Edited By ,Updated: 09 Apr, 2017 12:41 PM
बगदाद के खलीफा के पास एक गुलाम था जिसका नाम था हाशम। वह देखने में काफी बदसूरत था। दूसरे गुलाम उसकी बदसूरती का काफी मजाक उड़ाया करते थे लेकिन
बगदाद के खलीफा के पास एक गुलाम था जिसका नाम था हाशम। वह देखने में काफी बदसूरत था। दूसरे गुलाम उसकी बदसूरती का काफी मजाक उड़ाया करते थे लेकिन हाशम इसकी कभी परवाह नहीं करता था। वह अपने खलीफा के प्रति वफादार था और हर वक्त उनकी सेवा के लिए तत्पर रहता था। उनके हर आदेश का पालन पूरे मनोयोग से करता था। अपना ध्यान हमेशा अपने काम पर लगाया करता था। वह इस बात की पूरी कोशिश करता था कि खलीफा को किसी बात की तकलीफ न हो।
एक बार खलीफा अपने कई गुलामों के साथ बग्घी से कहीं जा रहा था। खलीफा के साथ साथ हाशम भी था। एक जगह कीचड़ में खलीफा का घोड़ा फिसल गया। उस वक्त खलीफा के हाथ में हीरे-मोतियों की एक पेटी थी। घोड़े के फिसलने से खलीफा का हाथ हिला और वह पेटी खुल कर गिर गई। रास्ते में चारों ओर हीरे-मोती बिखर गए। खलीफा ने ऐसा माना कि यह होनी थी लेकिन ईश्वर की कृपा से कहीं चोट नहीं लगी, जान नहीं गई इसलिए खुश होकर उसने गुलामों से कहा, ‘‘तुम सबको खुली छूट देता हूं। जाओ, जल्दी से अपने लिए हीरे-मोती बीन लो। जिनके हाथ जो लगेगा, वह उसका हो जाएगा।’’
गुलामों में हीरे-मोती उठाने की होड़ लग गई लेकिन हाशम चुपचाप खलीफा के ही पास खड़ा रहा। तब खलीफा ने पूछा, ‘‘तुमने मेरी बात नहीं सुनी क्या? तुम क्यों नहीं जाकर हीरे-मोती बीनते? क्या तुम्हें उनकी जरूरत नहीं है?’’
हाशम ने जवाब दिया, ‘‘मेरे लिए तो सबसे कीमती हीरा आप ही हैं। आपको छोड़कर कैसे जा सकता हूं।’’ खलीफा बेहद खुश हुआ। हाशम की अपने प्रति वफादारी एवं हीरे-मोती के प्रति अनासक्ति के उसके भाव ने खलीफा को बहुत प्रभावित किया। उसने उसी वक्त हाशम को गुलामी से मुक्त कर दिया।