Edited By Punjab Kesari,Updated: 09 Oct, 2017 08:48 AM
राम भक्त हनुमान जी ने बाल्यकाल में ही अपना जीवन श्रीराम को समर्पित कर दिया था। उन्होंने श्रीराम-रावण युद्ध में उनकी भरपूर सेवा करी। लंका से जब वह देवी सीता का पता लगा कर लौटे तो राम जी ने उनसे पूछा," मेरी
राम भक्त हनुमान जी ने बाल्यकाल में ही अपना जीवन श्रीराम को समर्पित कर दिया था। उन्होंने श्रीराम-रावण युद्ध में उनकी भरपूर सेवा करी। लंका से जब वह देवी सीता का पता लगा कर लौटे तो राम जी ने उनसे पूछा," मेरी सीता निशाचरों के बीच में रहकर अपनी रक्षा कैसे करती हैं?"
हनुमान जी ने कहा," नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट। लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट॥"
अर्थात- माता सीता के चारों तरफ राम नाम का पहरा है। वह हर समय आपके ध्यान में लीन रहती हैं। आंखे खोलने पर उनके नेत्रों के सामने आप के चरणों का दर्शन होता है।
सीता माता जब तक रावण की कैद में रही तब तक उन्होंने राम रक्षा कवच धारण कर अपनी रक्षा करी। यदि आप को भी किसी भी प्रकार का रोग अथवा शोक है तो आप भी इन पंक्तियों का श्रद्धा के साथ जाप करें। आस्था रखें की श्रीराम आपके अंग-संग हैं। संसार की कोई भी शक्ति इस कवच को बेअसर करने में समर्थ नहीं है। इस कवच की शक्ति को अपने तन-मन में एकाग्र करके साधना से जगाएं।
हनुमान चालीसा का पाठ अवश्य करें। उसके प्रभाव से हर बुराइ पर जीत हासिल की जा सकती है। जीवन से भय दूर होते हैं। बुरे शनि और मांगलिक दोष से पीड़ित जातकों के लिए तो हनुमान चालीसा संजीवनी बुटी के समान प्रभाव देती है।