निरपराध को सजा देना सबसे बड़ा अधर्म है

Edited By Punjab Kesari,Updated: 05 Feb, 2018 03:07 PM

punishing innocent person is the biggest sin

प्राचीन समय की बात है, एक महात्मा किसा राजा के दरबारम में बैठे थे। उसी समय महात्मा जी का एक अनुयायी राजा के दरबार में आया और रुआंसी आवाज में बोला, यहां के दुकानदार बहुत ही खराब है।

प्राचीन समय की बात है, एक महात्मा किसा राजा के दरबारम में बैठे थे। उसी समय महात्मा जी का एक अनुयायी राजा के दरबार में आया और रुआंसी आवाज में बोला, यहां के दुकानदार बहुत ही खराब है। जब मैं एक सिक्का लेकर सामान खरीदने गया तो उन्होंने कहा कि तुम्हारा सिक्का खोटा है। इसलिए तुम्हें यहां सामान नहीं मिल सकता। तुम महात्मा जी के शिष्य हो इसलिए तुम्हें छोड़ रहे है, वरना तुम्हें राजा से दंड दिलाकर ही रहते। राजा ने उसकी पूरी बात सुनने के बाद उने पूछा कि यह सिक्का तुम्हें किसने दिया। क्या तुम्हें मेरे राज्य के कानून का नही पता। 


उसके अच्छे से देख-परख कर राजा ने कहा कि यह सचमुच खोटा सिक्का है लेकिन मुझे ये ज्ञात है कि यह तुमने नहीं बनाया तुम मुझे इस बनाने वाले का नाम बता दो। मैं उसे सख्त दंड दूंगा। इस पर महात्मा ने राजा की बात को रोकते हुए कहा, यह सिक्का खोटा है तो क्या हुआ, इस पर छाप तो आपकी ही बनी है। राजा ने कहा, मैं और कुछ नहीं जानता। बस, मेरा सिक्का सच्चा होना चाहिए। मेरी छाप होने पर भी खोटा सिक्का बनाना और चलाना मेरे राज्य में बहुत बड़ा अपराध है।


इस पर महात्मा बोले, राजन आपका शासन अन्याय से पूरी तरह मुक्त नहीं है। आप निरपराध को सजा देते हैं। युद्ध के नाम पर लोगों का खून बहाते हैं। ऐसा करना क्या खोटा सिक्का चलाने के समान अपराध नहीं है। राजा महात्मा की बात को तुरंत समझ गया। उसने पूछा तब फिर मुझे अब क्या करना चाहिए। महात्मा बोले, तुम्हें शासन ठीक ढंग से करना चाहिए। जब ऐसा हो जाएगा तभी तुम्हारे शासन में खोटा सिक्का खत्म हो सकेगा।

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