2017 का पहला पुष्य योग, बनाएगा छप्पर फाड़ संपत्ति का स्वामी

Edited By ,Updated: 12 Jan, 2017 03:37 PM

pushya nakshatra

कल 2017 का पहला पुष्य योग है (13 जनवरी, शुक्रवार) 27 नक्षत्रों में आठवां नक्षत्र है पुष्य। पुष्य का अर्थ है पोषण करने वाला ऊर्जा और शक्ति देने वाला। नक्षत्रों का राजा पुष्य सभी नक्षत्रों में सर्वोत्तम है।

कल 2017 का पहला पुष्य योग है (13 जनवरी, शुक्रवार) 27 नक्षत्रों में आठवां नक्षत्र है पुष्य। पुष्य का अर्थ है पोषण करने वाला ऊर्जा और शक्ति देने वाला। नक्षत्रों का राजा पुष्य सभी नक्षत्रों में सर्वोत्तम है। इस नक्षत्र में किया गया प्रत्येक काम अपने साथ सफलता लेकर आता है। इस शुभ काल में खरीद-फरोख्‍त बहुत शुभ मानी जाती है। इस दौरान की गई पूजा सीधे आपके आराध्‍य तक पहुंच जाती है। इस योग के कई अशुभ फल भी हैं इसलिए इस योग में कोई भी मंगल कार्य करने से पहले किसी विशिष्ट विद्वान से परामर्श ले लें।


मान्यता है की पुष्य नक्षत्र में शुक्र का आगमन बहुत ही श्रेष्ठ फल प्रदान करता है। शुक्र की मौजूदगी में किए जाने वाली खरीदारी, उपाय, पूजन आदि जीवन में श्री और वैभव का संचार करते हैं और हमारे मार्ग में आने वाले सभी कंटकों का नाश करते हैं।

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जीवन में प्राप्त होने वाले आनंद, अलंकार, सम्पत्ति, स्त्री सुख, विवाह के कार्य, उपभोग के स्थान, वाहन, काव्य कला, संभोग तथा स्त्री आदि के संबंध में शुक्र से विचार करना उपयुक्त है। अगर यह ग्रह जन्म कुंडली में शुभ एवं सशक्त प्रधान है तो जातक का जीवन सफल एवं सुखमय माना जाता है किंतु शुक्र के निर्बल या अशुभ होने पर जातक की अनैतिक कार्यों में प्रवृत्ति होती है, समाज में मान-सम्मान नहीं मिलता तथा अनेक सुखों का अभाव रहता है।


पुष्य योग में देवी लक्ष्मी के इस स्तव का जाप करने से बना जा सकता है छप्पर फाड़ संपत्ति का स्वामी


श्री लक्ष्मी स्तव का पाठ 

नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते ।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोस्तुते ॥1॥

नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि ।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते ॥2॥

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयङ्करि ।
सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते ॥3॥


सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि ।
मंत्रपूते सदा देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते ॥4॥


आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि ।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोस्तुते ॥5॥

स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे ।
महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते ॥6॥


पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि ।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोस्तुते ॥7॥

श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते ।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोस्तुते ॥8॥


महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिमान्नरः ।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा ॥9॥


एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम् ।
द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वितः ॥10॥

त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम् ।
महालक्ष्मिर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा ॥11॥

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