Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Oct, 2017 02:18 PM
रहीम जी उच्चकोटी के संत थे, उन्होंने रहीम दोहावली के माध्यम से आमजन को ये सीख दी है- किसी की भी उचित बात ही स्वीकारें
रहीम जी उच्चकोटी के संत थे, उन्होंने रहीम दोहावली के माध्यम से आमजन को ये सीख दी है- किसी की भी उचित बात ही स्वीकारें
अनुचित वचन न मानिए जदपि गुराइसु गाढि़। है रहीम रघुनाथ तें, सुजस भरत को बाढि़॥
अर्थ : कितना भी बड़ा और रहस्यमयी क्यों न हो, कभी भी अनुचित वचन नहीं मानना चाहिए। कवि रहीम कहते हैं कि श्री रामचंद्र जी के वचनों से ही भरत को सुयश की प्राप्ति हुई।
भाव : कवि रहीम का कहने का आशय यही है कि यह जरूरी नहीं है कि बड़ा व्यक्ति सदैव उचित या सत्य बात ही कहे। कभी-कभी वह अनुचित वचन भी कह सकता है या किसी भ्रमवश झूठी बात भी कह सकता है, किन्तु हमारे लिए यही उचित है कि हम अपने विवेक से उचित-अनुचित का पता लगाकर ही उसे स्वीकार करें। जिस प्रकार भरत को राम के वचनों का पालन करने से यश मिला, उसी प्रकार श्रेष्ठ व्यक्ति के उचित कथन को ही स्वीकार करना चाहिए न कि उसकी बात इसलिए मान लें कि वह हमसे बड़ा है। इस प्रकार न केवल हम अपने साथ अन्याय करेंगे, बल्कि अनुचित बात का समर्थन करने के दोषी कहलाएंगे।
अच्छे-बुरे दिन सबके साथ
अब रहीम चुप करि रहउ, समुझि दिननकर फेर। जब दिन नीके आइ हैं बनत न लगि है देर॥
अर्थ : कवि रहीम कहते हैं कि बुरे दिनों के चक्र को समझकर अब मैं मौन धारण करके रहूंगा। जब जीवन में अच्छे दिन आएं तो कार्य बनते देर नहीं लगेगी।
भाव : कवि का कहना है कि जीवन में अच्छे और बुरे दिन सभी के साथ लगे रहते हैं लेकिन बुरे दिन आने पर हमें धैर्य नहीं खोना चाहिए, बल्कि धैर्य के साथ बुरे दिनों का सामना करना चाहिए और चुपचाप, बिना शोर मचाए उन कष्टों को सहन करना चाहिए, जो ऐसे समय में हमारे जीवन में आ गए हैं। क्योंकि जिस प्रकार रात्रि के बाद दिन आता है अर्थात अंधकार के बाद प्रकाश आता है, उसी प्रकार अच्छे दिन आने पर दुखों और कष्टों से मुक्ति पाकर जीवन को सुख के क्षणों से भरा जा सकता है। इसीलिए अच्छे दिनों के आने की आशा में बुरे दिनों के समय को धैर्यपूर्वक सहन करना चाहिए।