दोराहे पर खड़े व्यक्ति रहीम दोहावली से जानें, किस रास्ते पर आगे बढ़े

Edited By Punjab Kesari,Updated: 06 Feb, 2018 03:16 PM

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दुष्कर कार्य अब रहीम मुश्किल पड़ी, गाढ़े दोऊ काम। सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम। अर्थ और भाव : कवि रहीम कहते हैं कि अब तो जीवन में ऐसी कठिनाई आ गई कि दोनों कार्य करने दुष्कर हो गए हैं।

दुष्कर कार्य
अब रहीम मुश्किल पड़ी, गाढ़े दोऊ काम। सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम।


अर्थ और भाव : कवि रहीम कहते हैं कि अब तो जीवन में ऐसी कठिनाई आ गई कि दोनों कार्य करने दुष्कर हो गए हैं। सत्य बोलने से संसार का काम नहीं चलता और मिथ्या भाषण से भगवान का मिलना संभव नहीं है।


कभी-कभी आदमी के जीवन में ऐसे क्षण आ जाते हैं, जब वह यह निर्णय नहीं कर पाता कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। उसकी स्थिति दोराहे पर खड़े उस व्यक्ति की तरह हो जाती है, जो सोच नहीं पाता कि किस रास्ते से आगे बढ़े।


एक मार्ग सत्य का है तो दूसरा मार्ग असत्य का। यदि सत्य के मार्ग को पकड़ता है तो उसे किसी तरह का तात्कालिक लाभ प्राप्त नहीं होता और झूठ के मार्ग को पकड़ता है तो ईश्वर नाराज होता है। ऐसे में मनुष्य को चाहिए कि वह तात्कालिक लाभ की चिंता न करे और सत्य के मार्ग पर ही चले क्योंकि यदि विधाता नाराज हो गया तो कहीं भी त्राण नहीं है। कहीं भी सुख नहीं है। जीवन भर वह झूठ उसे भीतर ही भीतर खाता रहेगा।


ईश्वर बड़ा दयालु
अमर बेलि बिनु मूल की, प्रतिपालत है ताहि। रहिमन ऐसे प्रभुङ्क्षह तजि, खोजत फिरिए काहि॥

अर्थ और भाव : रहीम कहते हैं बिना जड़ की अमर बेल का पालन-पोषण करते हुए ईश्वर को त्यागकर मनुष्य संसार में व्यर्थ ही इधर-उधर शांति की खोज किस कारण से करता है? ईश्वर बड़ा सदय है। इस धरती पर जड़-चेतन, वह सभी का ख्याल रखता है जिसने भी जन्म लिया है, उसके पालन की व्यवस्था वह परमात्मा स्वत: ही कर देता है। निर्बल और असहाय व्यक्तियों की देखभाल ईश्वर करता है। यह मनुष्य व्यर्थ में शांति की खोज में भटकता है, जबकि परमात्मा तो उसके भीतर ही बैठा हुआ है। वह हर पल उसका ख्याल रखता है, अत: हमें सदैव उसे स्मरण करते रहना चाहिए।


क्रोध उचित नहीं
अमृत ऐसे वचन में, रहिमन रिस की गांस। जैसे मिसिरिहु में मिली, निरस बांस की फांस॥

अर्थ एवं भाव : जैसे मिश्री में नीरस बांस की फांस मिल जाती है, उसी प्रकार रहीम कवि कहते हैं कि अमृत जैसे मृदु वचनों में क्रोध की गांठ कैसे आ जाती है?


रहीम कवि यहां क्रोध को उचित नहीं मानते। क्रोध से मीठे वचन भी उसी प्रकार कटु हो जाते हैं जिस प्रकार मिश्री की डली में बांस की फांस निकल आती है। जैसे बांस की फांस मिश्री के स्वाद को बदमजा कर देती है, उसी तरह क्रोध करने वाले व्यक्ति के मीठे बोल भी कड़वे लगने लगते हैं। यदि कोई व्यक्ति मधुर वचन बोलता है, तो उसे क्रोध कभी नहीं करना चाहिए। उसे सदैव सावधान रहना चाहिए कि उसके गुस्से से किसी दूसरे के हृदय को ठेस न पहुंच जाए।

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