राजस्थान में है बाबा का विशाल मंदिर, हिंदू ही नहीं मुस्लिम भी करते हैं नमन

Edited By Punjab Kesari,Updated: 20 Jul, 2017 09:17 AM

ramdevra baba temple

बाबा रामदेव जी पीर राजस्थान के प्रसिद्ध लोक देवता हैं। वह साम्प्रदायिक सद्भाव तथा अमन के प्रतीक हैं। बाबा का अवतरण वि. सं. 1409 को भाद्रपद शुक्ल दूज के

बाबा रामदेव जी पीर राजस्थान के प्रसिद्ध लोक देवता हैं। वह साम्प्रदायिक सद्भाव तथा अमन के प्रतीक हैं। बाबा का अवतरण वि. सं. 1409 को भाद्रपद शुक्ल दूज के दिन तोमर वंशीय राजपूत तथा रुणीचा के शासक अजमल जी के घर हुआ। उनकी माता का नाम मैणादे था। उन्होंने पूरा जीवन शोषित, गरीब और पिछड़े लोगों के बीच बिताया तथा रूढिय़ों एवं छुआछूत का विरोध किया। भक्त उन्हें प्यार से रामपीर या राम सा पीर भी कहते हैं। बाबा को श्री कृष्ण का अवतार माना जाता है। उन्हें हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक भी माना जाता है। हिंदू ही नहीं मुस्लिम समुदाय के लोग भी पीरों के पीर बाबा रामदेव पीर के सजदे में सिर नवाते हैं। मुस्लिम दर्शनार्थी इन्हें ‘बाबा राम सा पीर’ कह कर पुकारते हैं। 

राजस्थान में जैसलमेर से करीब 12 किलोमीटर दूर रामदेवरा (रुणीचा) में बाबा का विशाल मंदिर है। साम्प्रदायिक सद्भाव के प्रतीक इस लोक देवता के प्रति भक्तों का समर्पण इतना है कि पाकिस्तान से मुस्लिम भक्त भी उन्हें नमन करने भारत आते हैं। बहुत से श्रद्धालु भाद्र माह की दशमी यानी रामदेव जयंती पर रामदेवरा में लगने वाले सालाना मेले में अवश्य पहुंचना चाहते हैं। यह मेला एक महीने से अधिक चलता है। 

लोक कथाओं के अनुसार बाबा के पिता अजमल और माता मीनल ने द्वारिका के मंदिर में प्रार्थना कर प्रभु से उन जैसी संतान प्राप्ति की कामना की थी। कहा जाता है कि जब रामदेव जी के चमत्कारों की चर्चा चारों ओर होने लगी तो मक्का (सऊदी अरब) से पांच पीर उनकी परीक्षा लेने आए। वे उनकी परख करना चाहते थे कि रामदेव के बारे में जो कहा जा रहा है वह सच है या झूठ। बाबा ने उनका आदर-सत्कार किया। जब भोजन के समय उनके लिए जाजम बिछाई गई तो एक पीर ने कहा, हम अपना कटोरा मक्का में ही भूल आए हैं। उनके बिना हम आपका भोजन ग्रहण नहीं कर सकते। इसके बाद सभी पीरों ने कहा कि वे भी अपने ही कटोरों में भोजन करना पसंद करेंगे। 

रामदेव जी ने कहा, आतिथ्य हमारी परम्परा है। हम आपको निराश नहीं करेंगे। अपने कटोरों में भोजन ग्रहण करने की आपकी इच्छा पूरी होगी। यह कह कर बाबा ने वे सभी कटोरे रुणीचा में ही प्रकट कर दिए जो पांचों पीर मक्का में इस्तेमाल करते थे। यह देखकर पीरों ने भी बाबा की शक्ति को प्रणाम किया और उन्होंने बाबा को ‘पीरों के पीर’ की उपाधि दी।
 

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