रामनवमी के शुभ अवसर पर जानिए वास्तव में कौन हैं श्रीराम

Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Mar, 2018 02:04 PM

ramnavmi who is actually shriram

मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम भारतीय संस्कृति के उज्ज्वल प्रतीक हैं। जिन्होंने भारतीय ही नहीं विश्व के अधिकांश लोगों के संपूर्ण व्यवहार, व्यक्तित्त्व, चेतना व जीवन को गहनतम रूप से प्रभावित किया है। साहित्य व कला जगत भी श्री राम की दिव्यता से...

मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम भारतीय संस्कृति के उज्ज्वल प्रतीक हैं। जिन्होंने भारतीय ही नहीं विश्व के अधिकांश लोगों के संपूर्ण व्यवहार, व्यक्तित्त्व, चेतना व जीवन को गहनतम रूप से प्रभावित किया है। साहित्य व कला जगत भी श्री राम की दिव्यता से प्रकाशित हैं व मानव निर्माण से आदर्श समाज की स्थापना से सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम् का सुदृढ़ आधार प्रदान कर रहे हैं। परन्तु बुद्धि व तर्क की तुलना में हर बात को तोलने वाले कुछ बुद्धिजीवी व वैज्ञानिक सोच वाले लोग श्री राम के अस्तित्व पर अनेकों प्रश्न चिन्ह लगाते हैं। कुछ का मत है कि राम का अस्तित्त्व ‘ब्रह्मस्वरूप’ में आध्यात्मिक है तो कुछेक के अनुसार दशरथ नंदन राजा राम के रूप में ऐतिहासिक हैं। अवतारवाद के सिद्धान्तानुसार श्रीराम के आध्यात्मिक व ऐतिहासिक दोनों रूपों को समन्वयात्मक दृष्टि से अवलोकित करने की क्षमता से सर्वथा अभाव से ही उक्त दो दृष्टिकोण उत्पन्न हुए हैं।


श्री राम विषयक धर्म ग्रन्थ स्पष्ट करते हैं कि प्रभु श्री राम तर्क व बुद्धि का विषय नहीं अपितु अनुसंधन एवं साक्षात्कार का विषय हैं। श्री रामचरितमानस में दर्ज है- राम अतर्क्य बुद्धि मन बानी, मत हमार अस सुनहि सयानी।। (बालकाण्ड) श्री राम के सत्य स्वरूप का वर्णन करते हुए ग्रंथ कहते हैं- ब्रह्म जो व्यापक अज अकल अनीह अभेद। सो कि देह धर नर जाहि न जानत वेद।। (बालकाण्ड) गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित उक्त वाणी सिद्ध करती है कि राम सृष्टि संचालक, जगत नियामक परम ऊर्जा स्वरूप ब्रह्म हैं जो साकार रूप धर अयोध्या नगरी में दशरथ पुत्र रूप में आविभूर्त हुए हैं।


आधुनिक वैज्ञानिक तथ्य प्रमाणित करते हैं कि जड़ चेतन पदार्थ के कण-कण में शक्ति का विपुल भण्डार व्याप्त है। विज्ञान इस बात को स्वीकार करता है कि प्रत्येक पदार्थ ऊर्जा का जमा हुआ रूप है। इस प्रकार भौतिक विज्ञान यथार्थ में परम विज्ञान के विपुल अक्षय कोष धार्मिक ग्रन्थों के आध्यात्मिक सिद्धान्तों की ही पुष्टि कर रहा है- सर्वं ह्येतद् ब्रह्मयमात्मा ब्रह्म (माण्डूक्योपनिषद्) अर्थात् समस्त विश्व ब्रह्म है। यह आत्मा भी ब्रह्म है। धार्मिक ग्रन्थ भी ब्रह्म हैं। धार्मिक ग्रन्थ सर्वव्यापी इसी ऊर्जा को ‘ब्रह्म’ कहते हैं। 


आइन्सटीन के ऊर्जा समीकरण E=MC2 ऊर्जा के पदार्थ के रूपान्तरण को ही सिद्ध करता है। इस समीकरण के अनुसार यदि एक ग्राम पदार्थ को पूणतया शक्ति में परिवर्तित किया जाए तो उससे 214 खरब 30 अरब कैलोरी ऊष्मा उत्पन्न होनी चाहिए। परन्तु अभी तक वैज्ञानिक कोई तकनीक विकसित नहीं कर सके जिससे पदार्थ को पूर्णतया शक्ति में बदला जा सके इसलिए आधुनिक विज्ञान अवतारवाद का खण्डन करते हुए श्रीराम को दो पृथक् रूपों में देखता है, जबकि ब्राह्माण्डीय ऊर्जा ब्रह्म का ही करुणाधीन हो सर्व कल्याण हेतु साकार रूप में धरा पर प्राकट्य ही यथार्थ में अवतार है।


‘ईश्वरा सिद्धे: प्रमाणा भवात्’ अर्थात् ईश्वर की सिद्धि प्रमाण से संभव है परन्तु साधारण प्रमाण से नहीं अपितु परम विज्ञान ब्रह्म ज्ञान से। यथा- राम ब्रह्म व्यापक जग जाना। नहि तहि पुनि विग्यान विहाना।। अतः श्रीराम की सत्यता को प्रमाणित करने हेतु एक ही मार्ग उपयुक्त है- तस्मात् सर्वं प्रयत्नेन गुरूणा दीक्षितो भवेत्।। अर्थात् सब प्रयत्नों द्वारा सर्वप्रथम गुरु दीक्षा ग्रहण करो, ईश्वरानुसंधन की प्रक्रिया ब्रह्मज्ञान प्राप्त करो।

प्रस्तुति
श्री आशुतोष महाराज जी

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