Edited By Punjab Kesari,Updated: 13 Feb, 2018 01:31 PM
स्वामी विवेकानंद रोज की तरह अपने पीतल के लोटे को मांज रहे थे। काफी देर तक लोटा मांजने के बाद जब वह उठे तो उनके एक शिष्य ने सवाल किया कि रोज-रोज इतनी देर तक इस लोटे को मांजने की क्या जरूरत है,
स्वामी विवेकानंद रोज की तरह अपने पीतल के लोटे को मांज रहे थे। काफी देर तक लोटा मांजने के बाद जब वह उठे तो उनके एक शिष्य ने सवाल किया कि रोज-रोज इतनी देर तक इस लोटे को मांजने की क्या जरूरत है, सप्ताह में एक बार मांज लें या ज्यादा से ज्यादा तीन बार। बाकी दिनों में तो इसे पानी से सिर्फ खंगाल कर काम चलाया जा सकता है। इससे इसकी चमक बहुत फीकी तो नहीं होगी। विवेकानंद ने कहा, ‘‘बात तो सही ही कहते हो। रोज-रोज पांच-दस मिनट इसमें बर्बाद ही होते हैं।’’ उसके बाद उन्होंने उसे नहीं मांजा। कुछ ही दिनों में उस लोटे की चमक फीकी पडने लगी। एक सप्ताह बाद विवेकानंद ने उस शिष्य को बुलाया और कहा कि मैंने इसे रोज मांजना छोड़ दिया, अब आज फुरसत में हो तो इस लोटे को साफ कर दो।
शिष्य ने हामी भरी और कुएं पर ले जाकर मूंज से लोटे को मांजना शुरू कर दिया। बहुत देर मांजने के बाद भी वह पहले वाली चमक नहीं ला सका। फिर और मांजा, तब जाकर लोटा कुछ चमका। विवेकानंद मुस्कुराए और बोले, ‘‘इस लोटे से सीखो। जब तक इसे रोज मांजा जाता रहा, यह रोज चमकता रहा। तुमको इसकी रोज की चमक एक सी लगती होगी, जबकि मुझे यह रोज थोड़ा सा और ज्यादा चमकदार दिखता था। मैं इसे जितना मांजता, यह उतना ज्यादा चमकता। एक दिन तुमने कहा तो मैंने इसे मांजना छोड़ दिया, फलस्वरूप इसकी चमक जाती रही।
ठीक ऐसे ही विद्यार्थी होता है। अगर रोज अम्यास करे तो ऐसे ही रोज चमकेगा। तुम एक दिन अभ्यास छोड़ोगे तो तुम्हारी चमक फीकी पड़ जाएगी। पहले जैसी चमक पाने के लिए तुम्हें फिर और वक्त बर्बाद करना पड़ेगा। इसलिए अगर समाज को मजबूत स्तंभ देना चाहते हो तो नियमित अभ्यास करो। तभी इस लोटे की तरह चमक कर समाज में रोशनी बिखेरोगे।’’