Edited By ,Updated: 04 Nov, 2016 04:31 PM
न स सखा यो न ददाति सख्ये-10/117/4
अर्थात : वह मित्र ही क्या जो अपने मित्र को सहायता प्रदान न करे।
सत्यस्य नाव: सुक्रतमपीपरन्-9/73/1
अर्थात : सत्य की नाव धर्मात्मा को पार लगाती है।
स्वस्ति पंथामनु चरेम् -5/51/15
अर्थात : हे परमेश्वर! हम कल्याण मार्ग के पथिक बनें।
अग्ने सख्ये या रिषामा वयं तव-9/14/4
अर्थात - हे प्रभो! हम तेरे मित्र भाव में दुखी अथवा विनष्ट न हों।
शुद्धा पूता भवत यज्ञिया स: -10/18/2
अर्थात : शुद्ध और पवित्र बनो तथा परोपकारमय जीवन जीने वाले हो।
सत्यमूचुर्नर एवा हि चक्रु -4/33/6
अर्थात : श्रेष्ठ पुरुषों ने सत्य का ही प्रतिपादन किया है और वैसा ही आचरण भी किया है।
युगा ऋतस्य पंथा : 8/31/13
अर्थात : सत्य का मार्ग सरल और सुख के गमन करने योग्य है।
दक्षिणावंतो अमृतम् भजंते- 1/125/6
अर्थात : दानी मनुष्य ही अमर पद की प्राप्ति करते हैं।
समाना हृदयानि व : 10/191/4
अर्थात : तुम्हारे हृदय (चित्त या मन) एक समान हों।
सरस्वती देवयंतो हवंते - 10/17/7
अर्थात : जिन्हें देव पद की अभिलाषा होती है वे सरस्वती का आह्वान करते हैं।
उद्बुध्यध्वम् समानस: 10/101/1
अर्थात : एक विचार और एक ज्ञान से युक्त मित्रजनो उठो! जागो!!
इच्छन्ति देवा : सुन्वतं न स्वप्नाय स्पृहयन्ति-8/2/18
अर्थात : देवता यज्ञकर्ता तथा पुरुषार्थी भक्त को चाहते हैं। आलसी से प्रेम नहीं करते।
यच्छा न: शर्म सप्रथ : 9/22/15
अर्थात : हे परमात्मा! आप हमें अखंड, रस से परिपूर्ण और ऐश्वर्य युक्त सुख प्रदान करें।
सुम्नयस्मे ते अस्तु - 1/114/10
अर्थात : हे परमेश्वर! हमारे अंतस में आपका महान कल्याणकारी सुख प्रकट हो।
अस्य प्रियास: सख्ये स्याम। -4/97/9
अर्थात : हम देवताओं से प्रेमयुक्त मैत्री करें।
पुनर्दहताहनता जानता सं गमेमहि-5/51/15
अर्थात : हम दानशील पुरुष से, विश्वासघात आदि न करने वाले और विवेक विचार से संयुक्त ज्ञानवान से सत्संग करते रहें।
जीवा ज्योतिरशीमहि।-7/32/26
अर्थात : हम जीवगण प्रभु की कल्याणमयी ज्योति को प्रतिदिन प्राप्त करें।
भद्रम् नो अपि वातप मनो दक्षयुत क्रतुम् -10/25/1
अर्थात : हे परमेश्वर! हम सबको कल्याणकारक मन, कल्याणकारक बल और कल्याणकारक कर्म प्रदान करें।
एकम् सद् विप्रा बहुधा वदंति- 1/964/46
अर्थात : वह सत्य (परमात्मा) एक ही है विद्वान लोग उसे ही अनेक नामों से पुकारते हैं।
एको विश्वस्य भुवनस्य राजा। - 6/36/4
अर्थात : वह एक परमात्मा ही सभी लोकों एवं भुवनों का एकमात्र स्वामी (राजा) है।
यस्तन्न वेद किमृचा करिष्यति-1/164/39
अर्थात : जो उस ब्रह्म को नहीं जानता, वह वेद से क्या करेगा।
सं गच्छध्वम् सं वद्ध्वम्-10/191/2
अर्थात : मिल कर चलो और मिलकर बोलो।
शुद्धा: पूता भवत यसियास:। 10/18/2
अर्थात : शुद्ध और पवित्र बनो तथा परोपकारमय जीवन वाले हो
देवानाम् सख्यमुप सेदिमा वयम्-9/89/2
अर्थात : हम देवों (विद्वानों) की मैत्री करें।
उप सर्प मातरम् भूमिम् 10/18/10
अर्थात : मातृभूमि की सेवा करो।
भद्र भद्रम् क्रतुमस्मासु धेहि-1/123/93
अर्थात : हे प्रभु! हम लोगों में सुख-सुख और कल्याणकारक उत्तम संकल्प, ज्ञान और कर्म को धारण कराओ।