Edited By ,Updated: 16 Dec, 2016 03:49 PM
- निर्गुण-वस्तु अर्थात् भगवान के दर्शन करने के लिए, एकमात्र
- निर्गुण-वस्तु अर्थात् भगवान के दर्शन करने के लिए, एकमात्र कानों को छोड़कर, और कोई उपाय नहीं है।
- खुशामद करने वाला गुरु या प्रचारक नहीं होता।
- सरलता का दूसरा नाम ही वैष्णवता है।
- आचार-रहित प्रचार, कर्म के अन्तर्गत है।
- माया के जाल से, एक भी प्राणी की रक्षा कर सको, ऐसा परोपकार सर्वश्रेष्ठ है।
- दूसरे के स्वभाव की निन्दा न करके, अपना ही सुधार करना।
श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी ठाकुर 'प्रभुपाद'
अनमोल वचन
- हार्दिक उपकार से बढ़ कर कोई चीज न तो इस संसार में मिल सकती है और न स्वर्ग में। —तिरुवल्लुवर
- पाप, कर्म स्वयं न करें न दूसरों से कराएं। —आचारांग
- जब हम कोई काम करने की इच्छा करते हैं, तो शक्ति आप ही आ जाती है। —मुंशी प्रेमचंद
- दानशीलता हृदय का गुण है, हाथों का नहीं। —एडीसन
- विद्या धन सभी सम्पदाओं से उत्तम है। —अथर्ववेद
- क्रोध से सब काम वैसे नहीं बनते, जैसे शांति से बनते हैं। —शंकराचार्य
- मानव जितना महान होगा उतना ही विनम्र होगा। —टैनिसन
- समय हाथ से निकल जाने के बाद केवल पश्चाताप ही हाथ लगता है। —स्वेट मार्डेन
- धैर्य सब उल्लासों एवं शक्तियों का मूल है। —रस्किन
- शांति के अतिरिक्त दूसरा कोई आनंद नहीं है। —गेरे