आज का गुडलक- इस पहर में करें ये काम लाईफ होगी टैंशन फ्री

Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Aug, 2017 06:12 AM

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शनिवार दिनांक 19.08.17 को भाद्रपद शनि प्रदोष पर्व मनाया जाएगा। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार हर माह के कृष्ण व शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी अर्थात तेरस तिथि परमेश्वर शिव को समर्पित है। त्रयोदशी को आम भाषा में

शनिवार दिनांक 19.08.17 को भाद्रपद शनि प्रदोष पर्व मनाया जाएगा। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार हर माह के कृष्ण व शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी अर्थात तेरस तिथि परमेश्वर शिव को समर्पित है। त्रयोदशी को आम भाषा में प्रदोष भी कहते है। शास्त्रनुसार शनि प्रदोष व्रत व पूजन शनि के अशुभ प्रभाव से बचाव के लिए सर्वोत्तम माना गया है। मान्यतानुसार प्रदोष का पालन करने से सभी प्रकार के दोषों का नाश होता है। शनि प्रदोष पर राजा दशरथ द्वारा रचित शनि स्तोत्र का पाठ करने से जीवन की सभी समस्याएं समाप्त होती हैं। शनि प्रदोष पूजन में काले शिवलिंग और शनिदेव के पूजन का बहुत बड़ा महत्व है।


विशेष पूजन: शनिदेव के चित्र का विधिवत पंचोपचार पूजन करें। तेल का दीपक करें, लोहबान धूप करें, सुरमा चढ़ाएं, शमीपत्र चढ़ाएं, रेवड़ी का भोग लगाएं। इस विशिष्ट मंत्र का 108 बार जाप करके नीचे लिखे हुए दशरथ कृत शनि स्तोत्र का 11 बार पाठ करें। पूजन उपरांत रेवड़ियां गरीबों में बांट दें। 


विशेष मंत्र: ॐ शनैश्चराय नमः॥


विशेष मुहूर्त: शाम 19:10 से शाम 19:40 तक।

 

महूर्त विशेष
अभिजीत मुहूर्त:
दिन 11:58 से 12:50 तक।


अमृत काल: शाम 16:56 से शाम 18:25 तक।


यात्रा महूर्त: दिशाशूल - पूर्व, राहुकाल वास - पूर्व। अतः आज पूर्व दिशा की यात्रा टालें।

 

आज का गुडलक ज्ञान
गुडलक कलर:
श्यामल।


गुडलक दिशा: पश्चिम।


गुडलक टाइम: शाम 19:30 से शाम 20:30 तक।


गुडलक मंत्र: ॐ शमीपत्रप्रियाय नमः॥


गुडलक टिप: मानसिक उद्वेग से मुक्ति हेतु 1 मिट्ठी काले तिल सिर से वारकर दान करें।


गुडलक फॉर बर्थडे: शनि मंदिर में सरसों के तेल का दीपक करने से कार्यक्षेत्र में सफलता मिलेगी।


गुडलक फॉर एनिवर्सरी: दंपति द्वारा शनि मंदिर में सात लौंग चढ़ाने से दांपत्य में स्थिरता आएगी।


दशरथ कृत शनि स्तोत्र
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च। नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ॥1॥
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च। मो विशाल-नेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ॥2॥ 
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:। नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते ॥3॥
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:। नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने ॥4॥
नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते। सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च ॥5॥
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते। नमो मन्दगते तुभ्यं निरि नीरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते ॥6॥
तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च। नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ॥7॥
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे। तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥8॥
देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा:। त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत: ॥9॥
प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत। एवं स्तुतस्तद सौरिग्र्रहराजो महाबल: ॥10॥


आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com

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