100 फुट लंबे ढौज में वास करते हैं गरुड़ देवता, पवित्रता न होने पर होती है अकाल मृत्यु

Edited By ,Updated: 01 Nov, 2016 09:43 AM

sdhishthatri devi dashami warda mandir

देवभूमि कुल्लू के विभिन्न गांवों में अद्भुत और प्राचीन परम्पराएं विद्यमान हैं। देवलु सदियों से इनका पालन करते आ रहे हैं। ऐसी ही अद्भुत परम्परा और मान्यता

देवभूमि कुल्लू के विभिन्न गांवों में अद्भुत और प्राचीन परम्पराएं विद्यमान हैं। देवलु सदियों से इनका पालन करते आ रहे हैं। ऐसी ही अद्भुत परम्परा और मान्यता का प्रत्यक्ष उदाहरण जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित काईस गांव में देखने को मिलता है। काईस क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी दशमी वारदा मंदिर प्रांगण के आगे सैंकड़ों साल पुराने 100 फुट लंबे ढौज में वास करती हैं जिसे सम्पूर्ण जगत के पालनहार श्रीहरि विष्णु के वाहन गरुड़ देवता का वास भी माना जाता है।

 

मान्यता है कि गरुड़ देवता इस ढौज के ऊपर बैठ कर हरियान क्षेत्र की ओर आ रही बुरी शक्तियों पर नजर रखते हैं। देवता की पहरेदारी से बुरी शक्तियां नजदीक नहीं आती हैं। यह भी मान्यता है कि बुरे वक्त में सच्चे मन से आह्वान करने पर देवता भक्तों की रक्षा करते हैं। सैंकड़ों साल पहले यह देवदार पेड़ की ढौज धारा गांव के अधिष्ठाता देव थीरमल नारायण की नराइड़ी (देव स्थल) से काईस क्षेत्र के 7 हरियानों द्वारा देव विधि अनुसार ढोल-नगाड़े के साथ पूरे पेड़ के साथ यहां लाई गई थी। ढौज को स्थापित करने से पहले देवी दशमी वारदा और गरुड़ देवता का विधिवत पूजन करने के उपरांत देव आदेश पर 100 फुट लंबी ढौज को 30 फुट जमीन में गाड़ दिया है। देव शक्ति के कारण यह देवदार की चमत्कारी ढौज सैंकड़ों साल बीत जाने के बाद भी सड़ने का नाम नहीं ले रही है। इससे देव शक्ति का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।

 

देव आदेश पर लाई जाती है ढौज
सैंकड़ों साल पुरानी ढौज के स्थान पर नई ढौज स्थापित करने के लिए देवलु अपनी मर्जी नहीं कर सकते हैं। इसके लिए क्षेत्र के दर्जनों देवी-देवताओं के गुर के माध्यम से पूछ डाली जाती है। देव आदेश मिलने के बाद ही काईस गांव से सटे धारा नराइड़ी में जाकर स्वयं देवी-देवता ही पेड़ को चिन्हित करते हैं। 

 

पवित्रता न होने पर होती है अकाल मृत्यु
जब भी ढौज यहां लाई जाती है, उस दौरान मुख्य कारकूनों सहित क्षेत्र के 7 हरियानों को जूठ-परिठ (अपवित्रता) का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। देवलुओं द्वारा इस नियम का पालन न करने पर देवी-देवताओं का आशीर्वाद नहीं मिलता है जिससे बुरी शक्तियों के प्रकोप से क्षेत्र में कई लोगों की अकाल मृत्यु भी हो जाती है। लिहाजा भूल-चूक न हो इसके लिए देवता के मुख्य कारकून सहित हरियानों को इस नियम का हमेशा पालन करना पड़ता है। 

 

देवी-देवता कारदार संघ एवं देवी दशमी वारदा के कारदार दोत राम ठाकुर का कहना है कि यहां स्थापित चमत्कारी देवदार की ढौज देवी दशमी वारदा मंदिर को दूर से ही चिन्हित करती है। इसे दैवीय शक्ति का प्रतीक चिन्ह भी माना गया है। इसके साथ ही इसके सिरे में गरुड़ देवता भी विराजमान हैं। मान्यता है कि देवता क्षेत्र के हरियानों की बुरी शक्तियों से रक्षा करते हैं। इस ढौज को स्थापित करने से पूर्व शुभ मुर्हूत, शुभ दिन तथा देवताओं के आदेश पर ही देवता के मुख्य कारकूनों द्वारा देव विधि अनुसार ध्वजारोहण किया जाता है।
 

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