Edited By Niyati Bhandari,Updated: 30 Mar, 2018 02:09 PM
संत वाणी के अनुसार शास्त्र और संत किसी को बाध्य नहीं करते कि तुम हमारे में श्रद्धा करो। श्रद्धा करने अथवा न करने में मनुष्य स्वतंत्र है। श्रेष्ठ पुरुष से (परहित का असीम भाव होने के कारण) संसार मात्र का स्वाभाविक ही बहुत उपकार हुआ करता है,
संत वाणी के अनुसार शास्त्र और संत किसी को बाध्य नहीं करते कि तुम हमारे में श्रद्धा करो। श्रद्धा करने अथवा न करने में मनुष्य स्वतंत्र है। श्रेष्ठ पुरुष से (परहित का असीम भाव होने के कारण) संसार मात्र का स्वाभाविक ही बहुत उपकार हुआ करता है, चाहे कोई समझे या न समझे। कारण यह है कि व्यक्तित्व (अहंता-ममता) मिट जाने के कारण भगवान की उस पालन शक्ति के साथ उसकी एकता हो जाती है, जिसके द्वारा संसार मात्र का हित हो रहा है।
भगवान कृष्ण ने अर्जुन को कहा-विचार शुद्ध और भावना शुद्ध, चेहरे पर मुस्कुराहट होनी चाहिए। युद्ध हथियारों से नहीं, हिम्मत से जीता जाता है। —सुधांशु महाराज
सबसे बड़ा आलोक पर्व है अपने इर्द-गिर्द के लोगों के चेहरों पर मुस्कान देखना। —रेकी दर्शन
आत्मविश्वास वीरता का रहस्य है। —स्वामी विवेकानंद
उत्साह, सामर्थ्य और मन में हिम्मत नहीं हारना, ये कार्य की सिद्धि करने वाले गुण कहे गए हैं। —वेद व्यास
जब मनुष्य का युद्ध अपने साथ प्रारंभ होता है तो उसका कुछ मूल्य होता है। —शरतचंद्र
राग तो सुख के संस्कार से उत्पन्न होता है और द्वेष दुख के संस्कार से। —पतंजलि
मनुष्य का पहला कर्तव्य ज्ञान प्राप्ति और दूसरा लोक कल्याण है। —स्वामी विवेकानंद
जिसके हाथ में क्षमा का धनुष है, दुर्जन उसका क्या कर लेगा। —चाणक्य नीति
जो जिसे अच्छा लगे, वही उसके लिए भला है। —बाबू गुलाबराय
इंसान शत्रु तब बनता है जब उसके मन में शत्रुता होती है। आप शत्रु को भी होली का रंग लगाओगे तो वह भी आपका मित्र बन जाएगा। —श्री श्री रविशंकर