Edited By ,Updated: 27 Mar, 2017 11:20 AM
शिवपुराण में भगवान शंकर ने देवी पार्वती को समझाते हुए सोमवती अमावस्या के भेद का उल्लेख किया है। शब्द सोमवती दो शब्दों से मिलकर बना है सोम् और वती। सोम् का अर्थ है अमृत और वती का अर्थ है प्रदाता । इसी
शिवपुराण में भगवान शंकर ने देवी पार्वती को समझाते हुए सोमवती अमावस्या के भेद का उल्लेख किया है। शब्द सोमवती दो शब्दों से मिलकर बना है सोम् और वती। सोम् का अर्थ है अमृत और वती का अर्थ है प्रदाता । इसी प्रकार अमावस्या शब्द भी दो शब्दों से मिलकर बना है अमा और वस्या। अमा का अर्थ है एकत्रिकरण तथा वस्या का अर्थ है वासरे अर्थात वास । मान्यतानुसार सोमवती अमावस्या बड़े भाग्य से पड़ती है । पांडव तरसते रहे परंतु उनके जीवन काल में सोमवती अमावस्या कभी नहीं पड़ी अर्थात सोमवती अमावस्या वो विशिष्ट दिवस जिस दिन सर्व दैवीय शक्तियां एक साथ वास करके अमृत को प्रदान करती हैं।
शास्त्रानुसार सोमवती अमावस्या को पुष्य काल मुहूर्त माना गया गया है। वैज्ञानिक दृष्टि से अमावस्या के दिन चंद्रमा की आकाश मे अनुपस्तिथि रहती है परंतु आकाशमंडल में अवस्थित पिंडों और वायुमंडल द्वारा संपूर्ण वर्ष में अवशोषित चंद्रमा के अमृत अर्थात सोमांश को सोमवती अमावस्या के दिन पृथ्वी पर अत्यधिक मात्रा में विच्छिन्न किया जाता है । ज्योतिषशास्त्र के खगोल स्कंद अनुसार चंद्रमा अपनी संपूर्ण शक्ति सूर्य से ही अवशोषित करता है तथा चंद्रमा ही पृथ्वी पर अवस्थित सम्पूर्ण जल तत्व पर अपना अधिपत्य रखता है । वैज्ञानिक सिद्धांत अनुसार मानव की शारीरिक संरचना 80% जल तत्व से निर्मित है और चंद्रमा को जल और मन का कारक माना गया है, साथ ही सोमांश को प्राप्त करने का साधन भी जल ही है। इसी कारण सोमवती अमावस्या पर स्नान, दान धर्म व पूजा उपासना को पुष्य काल फलदायी माना गया है।