सिद्धपीठ है आलंदी, कथा के साथ जानें दर्शनों के लिए कैसे पहुंचें

Edited By Punjab Kesari,Updated: 01 Jun, 2017 03:18 PM

siddhpit is alandi how to reach the audience

संतों की भूमि महाराष्ट्र में एक उच्च कोटि के संत हुए संत ज्ञानेश्वर। अलौकिक काव्य प्रतिभा, तत्ववेत्ता, ज्ञानावतार और श्रेष्ठ संत थे ज्ञानेश्वर। भगवद्गीता पर उनकी लिखी टीका ‘ज्ञानेश्वरी’ आज भी कई लोगों को भवसागर पार करने की

संतों की भूमि महाराष्ट्र में एक उच्च कोटि के संत हुए संत ज्ञानेश्वर। अलौकिक काव्य प्रतिभा, तत्ववेत्ता, ज्ञानावतार और श्रेष्ठ संत थे ज्ञानेश्वर। भगवद्गीता पर उनकी लिखी टीका ‘ज्ञानेश्वरी’ आज भी कई लोगों को भवसागर पार करने की राह बताती है। ज्ञानेश्वर का जन्म श्रावण कृष्ण अष्टमी की मध्य रात्रि में, शके 1197 (इ.स. 1275) को हुआ। उनके पिता का नाम विठ्ठलपंत कुलकर्णी एवं माता का नाम रुक्मिणीबाई था। निवृत्तिनाथ, संत ज्ञानेश्वर के अग्रज थे। निवृत्तिनाथ, सोपान तथा मुक्ताबाई उनके भाई-बहन थे। विठ्ठलपंत मूलत: विरक्त थे। उनके संन्यास लेने के उपरांत गुरु की आज्ञानुसार पुन: गृहस्थाश्रम में प्रवेश किया। 


विठ्ठलपंत तीर्थ यात्रा करते-करते श्रीक्षेत्र आलंदी में आकर रहने लगे तथा वहीं बस गए। अलंकापुरी अर्थात आलंदी सिद्धपीठ है। उस काल में संन्यासी के बच्चे जानकर तथाकथित समाज ने चारों भाई-बहनों का उपहास किया। संत ज्ञानेश्वर के दुखी माता-पिता ने शरीर त्याग दिया। श्री निवृत्तिनाथ संत ज्ञानेश्वर के सद्गुरु बने। उन्होंने नेवासा क्षेत्र में अपने सदगुरु की कृपा व आशीर्वाद से भगवद् गीता पर प्रख्यात सारांश ग्रंथ लिखा। इस ग्रंथ को ‘ज्ञानेश्वरी’ कहा गया। संत ज्ञानेश्वर ने ‘ज्ञानेश्वरी’  के माध्यम से संस्कृत भाषा का ‘ज्ञान’, आसन प्राकृत भाषा में प्रस्तुत किया। ज्ञानेश्वर रचित ‘पसायदान’ में विश्व कल्याण की प्रार्थना दिखती है।


उनका दूसरा ग्रंथ ‘अनुभवामृत’ अथवा ‘अमृतानुभव’ है जो विशुद्ध तत्वज्ञान का, जीव-ब्रह्म के मिलन का ग्रंथ है। ‘चांगदेव पासष्टी’ ग्रंथ द्वारा उन्होंंने चांगदेव का गर्व हरण कर उन्हें उपदेश दिया। ऐसा माना जाता है कि महान योगी चांगदेव 1400 वर्ष जीवित थे, उनके अहंकार को ज्ञानेश्वर ने चूर किया इसीलिए संत ज्ञानेश्वर के उपदेशात्मक दोहों का ग्रंथ चांगदेव पासष्टी कहलाया। 


संत ज्ञानेश्वर का ‘हरिपाठ’ नामपाठ है। भागवत धर्म की तथा वारकरी सम्प्रदाय की नींव रखने का श्रेय भी संत ज्ञानेश्वर को जाता है। मार्गशीर्ष कृष्ण-13 को संत ज्ञानेश्वर ने समाधि ले ली। इस तिथि को आलंदी में संत ज्ञानेश्वर का समाधि उत्सव मनाया जाता है।


कैसे पहुंचें?
मुम्बई और ठाणे से राज्य परिवहन की व निजी बसें आलंदी जाती हैं। पुणे रेलवे स्टेशन उतरकर वहां से भी शेयर टैक्सी या निजी वाहन से आलंदी पहुंचा जा सकता है। पुणे से आलंदी की दूरी लगभग 19 किलोमीटर है।
 

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