Sindhi Day 2022: झूलेलाल की मधुर स्मृतियां संजोए है चेटीचंड

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 02 Apr, 2022 07:03 AM

sindhi day today the sweet memories of jhulelal are saved by chetichand

समूचे विश्व में फैले सिंधी समुदाय के लोग प्रतिवर्ष चैत्रमास की चन्द्रतिथि को अपने आराध्य देव संत झूलेलाल का जन्मोत्सव प्रेम-भाईचारे एवं राष्ट्रीय एकता के रूप में मनाते हैं। इस दिन को ‘सिंधी दिवस’ या ‘सिंधियत’ भी कहा जाता है।

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Sindhi Diwas- समूचे विश्व में फैले सिंधी समुदाय के लोग प्रतिवर्ष चैत्रमास की चन्द्रतिथि को अपने आराध्य देव संत झूलेलाल का जन्मोत्सव प्रेम-भाईचारे एवं राष्ट्रीय एकता के रूप में मनाते हैं। इस दिन को ‘सिंधी दिवस’ या ‘सिंधियत’ भी कहा जाता है। जलपति वरुणावतार भगवान झूलेलाल भगवान श्री कृष्ण के ही अवतार माने जाते हैं। संत झूलेलाल के संबंध में यह कहा जाता है कि लगभग 1040 वर्ष पूर्व सिंध (पाकिस्तान) में मुगल बादशाह मिरखशाह के अत्याचारों से जनता बेहद त्रस्त थी। बादशाह मुस्लिम धर्म अपनाने के लिए जनता पर जुल्म ढाने लगा तो चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई और इस संकट की घड़ी में त्रस्त लोगों ने सिंधु नदी के तट पर वरुण देव की पूजा-अर्चना कर बादशाह के अत्याचारों से छुटकारा पाने की प्रार्थना की। लगभग सात दिन तक लोगों ने ‘वरुण देव’ की पूजा की। तब अपने भक्तों की पुकार सुन वरुण देवता मछली पर सवार होकर संत ‘झूलेलाल’ के रूप में प्रकट हुए और कहा कि वह शीघ्र ही अत्याचारियों का नाश करने के लिए नसीरपुर शहर में रतन राय के घर जन्म लेंगे। कुछ समय बाद संत झूलेलाल ने माता देवकी की कोख से जन्म लिया और बालक का नाम घर वालों ने ‘उदयचंद्र’ रखा लेकिन माता ने बालक को ‘झूलेलाल’ के नाम से पुकारा। संत झूलेलाल के अलौकिक क्रिया कलापों को देखकर ऐसा लगने लगा कि मानो सर्वत्र सुख-शांति, प्रेम और भाईचारे के लिए जन्मे हैं। उन्होंने अपने श्रद्धालुओं को आदेश दिया कि वे किसी भी धर्म पर कटाक्ष न करें तथा शांति बनाए रखें।

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जब संत झूलेलाल के बारे में बादशाह मिरख को खबर लगी तो उसने उन्हें अगवा करने के लिए अपने वजीर एवं सेना को भेजा लेकिन वे इस अवतारी पुरुष को देखकर भयभीत हो गए और उनके पास जाने की कोई हिम्मत न जुटा पाया, अत: वजीर सेना समेत बादशाह के पास लौट आए व कहा कि वह कोई असाधारण बालक नहीं हैं। उन्होंने मिरख शाह से कहा कि वह कोई असाधारण बालक नहीं है बल्कि एक चमत्कारी पुुरुष हैं। बादशाह ने अहंकारवश एक न सुनी और उसने एक बड़ी सेना संत झूलेलाल को पकडऩे के लिए भेजी दी।


तब संत झूलेलाल ने बादशाह का घमंड चूर करने के लिए उसके महल पर अपनी दिव्य शक्ति से कहर बरपा दिया। देखते ही देखते महल धू-धू कर जलने लगा। बादशाह यह देखकर इतना घबराया कि वह दल-बल समेत संत झूलेलाल के चरणों में आ गिरा और माफी की दुआ करने लगा। चारों तरफ चीख-पुकार सुनकर संत झूलेलाल ने अग्नि देव और वायुदेव को शांत कर दिया। अब तो बादशाह व उसकी सेना पूरी तरह से संत झूलेलाल के मुशद बन, उनके बताए मार्ग पर चलने लगे। 

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संत झूलेलाल से बादशाह मिरखशाह इतना प्रभावित हुआ कि उसने उनके जन्म स्थल पर एक भव्य-मंदिर बनवाया और उसका नाम ‘जिंदा पीर’ रखा। तभी से यह स्थान हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लिए पवित्र तीर्थस्थल बन गया जहां आज भी लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने जाते हैं। संत झूलेलाल ने अपने भक्तों से कहा कि मेरा वास्तविक रूप जल एवं ज्योति ही है। इसके बिना संसार जीवित नहीं रह सकता।

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उन्होंने न केवल सिंधी समुदाय की ही रक्षा नहीं की बल्कि मुसलमानों को भी नेकनीयती का रास्ता दिखलाया और आपसी वैमनस्य की खाई को भी पाटने का कार्य किया। उन्होंने अपने संदेश में ज्ञान एवं एकता पर बल देते हुए धर्म व जाति के बंधनों से ऊपर उठकर सेवा पर जोर दिया। उन्होंने समभाव से सभी को गले लगाया तथा साम्प्रदायिक सद्भाव का संदेश देते हुए ‘दरियाही पंथ’ की स्थापना की। सिंधी समुदाय को भगवान राम के वंशज के रूप में भी माना जाता है। राजा जयद्रथ भी सिंधी समुदाय के थे जिसका उल्लेख महाभारत काल में भी मिलता है। समूचा सिंधी समुदाय ‘चेटीचंड पर्व’ से ही नववर्ष प्रारम्भ करता है। चेटीचंड के अवसर पर सिंधी भाई अपार श्रद्धा के साथ झूलेलाल की शोभायात्रा निकालते हैं और इस दिन ‘सूखोसेसी’ (प्रसाद) वितरित करते हैं।


चेटीचंड के दिन सिंधी स्त्री-पुरुष तालाब या नदी के किनारे दीपक जला कर जल देवता की पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन पूरे देश में संत झूलेलाल मंदिरों में उत्सव सा दृश्य नजर आता है। झूलेलाल की शोभा यात्रा में स्त्री-पुरुष और बच्चे नाचते-गाते व जोर-जोर से ‘आयो लाल झूले लाल’ का जयकारा लगाते हुए चलते हैं। शांत व सेवा भावी प्रवृत्ति के सिंधी समुदाय के लोग प्राय: हरेक से मिलते समय बड़े प्रेम भाव से ‘हरे राम’ अवश्य उच्चारित करते हैं जो इस समुदाय की विशिष्ट पहचान है।

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