Sunday को सुरैया काल में श्रीदेवी करेंगी छप्पर फाड़ धन की बरसात

Edited By Punjab Kesari,Updated: 02 Sep, 2017 11:12 AM

sridevi will give rain on sunday in suraiyya era

मान्यतानुसार भाद्रपद शुक्ल अष्टमी अर्थात राधा अष्टमी से लेकर आश्विन कृष्ण अष्टमी अर्थात कलाष्टमी तक का काल सुरैया कहलाता है। इन षोडश दिनों के काल को सुरैया पर्व के नाम से जाना जाता है।

मान्यतानुसार भाद्रपद शुक्ल अष्टमी अर्थात राधा अष्टमी से लेकर आश्विन कृष्ण अष्टमी अर्थात कलाष्टमी तक का काल सुरैया कहलाता है। इन षोडश दिनों के काल को सुरैया पर्व के नाम से जाना जाता है। रविवार 3 सितंबर को ये शुभ दिन है। सुरैया अर्थात वो काल जो जीवन को सुरों से सजा दे। चाणक्य के अनुसार सुरैया पर्व काल का प्रयोग विश्वामित्र, दुर्वासा, परशुराम, राम, बुद्ध, महावीर तक ने किया था। भारत के मैथिली क्षेत्र और मैथिली साहित्य में सुरैया पर्व काल का प्रयोग वैज्ञानिक व आध्यात्मिक समृद्धि हेतु आज भी किया जाता है। सुरैया पर्व काल आज भी स्वयं में गुप्त समृद्धि व संपन्नता की साधनाएं समेटे हुए है। शास्त्रों ने इन सोलह दिनों को धार्मिक, यांत्रिक, तांत्रिक, आध्यात्मिक उत्थान के साथ-साथ समृद्धि प्राप्ति हेतु बेहद महत्वपूर्ण माना है।


मूलतः हिमालय क्षेत्र के लोग इस षोडश दिवसीय महापर्व को गुप्त लक्ष्मी साधना हेतु सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। शास्त्रनुसार सुरैया काल के दौरान यक्षिणी व योगिनी साधना का बहुत अधिक महत्व है। मान्यतानुसार यक्षिणी साधना में यक्ष व यक्षिणी को प्रसन्न कर स्थायी समृद्धि प्रदान करती है। शास्त्रों में कुबेर को यक्षराज कहा गया है और देवी षोडशी के सुगम स्वरूप महालक्ष्मी को यक्षिणी कहा गया है। अतः हिमालय क्षेत्र में आज भी आमजन गुप्त षोडशी और कुबेर की गुप्त यक्ष व यक्षिणी साधनाएं करते हैं। इन सोलह दिनों में यक्षराज कुबेर, महालक्ष्मी और षोडशी यक्षिणी की साधना महासिद्धि प्रदान करने वाली मानी जाती है। मान्यतानुसार महा सिद्धियों की प्राप्ति की इच्छा रखने वालों के लिए ये 16 रात्रियां बेहद कीमती मानी गई हैं।


षोडशी को शास्त्रों ने श्रीविध्या कहा है जो की मूलप्रकृति शक्ति की सबसे मनोहर बालस्वरुपा श्री विग्रह वाली देवी हैं। 16 वर्षीय षोडशी चतुर्भुजी, त्रिनेत्री, वर अभय ज्ञान व तप की मुद्रा धारण करती है। कमल आसन पर "क" आकार में विराजित श्रीदेवी को ललिता, राजराजेश्वरी, महात्रिपुरसुंदरी, बाला नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों में इनके दो वर्ण भेद बताए हैं पहला श्यामा व दूसरा अरुणा। श्यामा भेद में यह दक्षिणकालिका हैं व अरुणा भेद में यह षोडशी हैं। इनकी 16 कलाओं के कारण ये षोडशी कहलाती हैं। भगवती के चारों दिशाओं में चार और एक ऊपर की ओर मुख होने से इन्हें पंचवक्रा भी कहा जाता है। अनेक मान्यताओं के अनुसार इन्हें ही गजलक्ष्मी कहा गया है। मूलतः सुरैया के दौरान षोडशी साधना से स्थायी धन प्राप्त होता है।


आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com

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