जब तक मनुष्य में ये गुण नहीं आता, वह भगवान श्री कृष्ण को नहीं समझ सकता

Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 Aug, 2017 09:28 AM

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श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप व्याख्याकार : स्वामी प्रभुपाद  अध्याय 7: भगवद्ज्ञान  सभी पदार्थों के बीज श्री कृष्ण

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप
व्याख्याकार : स्वामी प्रभुपाद 
अध्याय 7: भगवद्ज्ञान 


सभी पदार्थों के बीज श्री कृष्ण 


बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम्। बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम्।।10।।


अनुवाद : हे पृथापुत्र! यह जान लो कि मैं ही समस्त जीवों का आदि बीज, बुद्धिमानों की बुद्धि तथा समस्त शक्तिमान पुरुषों का तेज हूं।


तात्पर्य : श्री कृष्ण समस्त पदार्थों के बीज हैं। चर तथा अचर जीव के कई प्रकार हैं। पक्षी, पशु, मनुष्य तथा अन्य सजीव प्राणी चर हैं, पेड़-पौधे अचर हैं- वे चल नहीं सकते, केवल खड़े रहते हैं। प्रत्येक जीव चौरासी लाख योनियों के अंतर्गत हैं, जिनमें से कुछ चर हैं और कुछ अचर किन्तु इन सबके जीवन के बीजस्वरूप श्री कृष्ण हैं। जैसा कि वैदिक साहित्य में कहा गया है कि ब्रह्म या परमसत्य वह है जिससे प्रत्येक वस्तु उद्भूत है। 


श्री कृष्ण परब्रह्म या परमात्मा हैं। ब्रह्म तो निर्विशेष है किन्तु परब्रह्म साकार है। निर्विशेष ब्रह्म अपने साकार रूप में स्थित हैं— यह भगवद्गीता में कहा गया है। अत: आदि रूप में श्री कृष्ण समस्त वस्तुओं के उद्गम हैं। वह मूल हैं। जिस प्रकार मूल सारे वृक्ष का पालन करता है उसी प्रकार कृष्ण मूल होने के कारण इस जगत के समस्त प्राणियों का पालन करते हैं। इसकी पुष्टि वैदिक साहित्य में (कठोपनिषद् 2.2.13) हुई है—

 

नित्यो नित्यानां चेतनश्चेतनानाम्
एको बहूनां यो विदधाति कामान्।


वह समस्त नित्यों के नित्य हैं। वह समस्त जीवों के परम जीव हैं और वह ही समस्त जीवों का पालन करने वाले हैं। मनुष्य बुद्धि के बिना कुछ नहीं कर सकता और जब तक मनुष्य बुद्धिमान नहीं होता, वह भगवान श्री कृष्ण को नहीं समझ सकता।


(क्रमश:)

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