श्रीराम जी के चरण चिन्ह में है अपार शक्ति, जानें रहस्य

Edited By Punjab Kesari,Updated: 07 Mar, 2018 08:20 AM

sriram jis footprint has unlimited power

अंकुस अंबर कुलिस कमल जव धुजा धेनुपद। संख चक्रस्वस्तिक जंबूफल कलस सुधाहृद॥ अर्धचंद्र षटकोन मीन बिंदु ऊरधरेखा। अष्टकोन त्रयकोन इंद्रधनु पुरुषविशेषा॥ सीतापति पद नित बसत एते मंगलदायका चरनचिह्न रघुबीर के संतन सदा सहायका।

अंकुस अंबर कुलिस कमल जव धुजा धेनुपद। संख चक्रस्वस्तिक जंबूफल कलस सुधाहृद॥
अर्धचंद्र षटकोन मीन बिंदु ऊरधरेखा। अष्टकोन त्रयकोन इंद्रधनु पुरुषविशेषा॥
सीतापति पद नित बसत एते मंगलदायका चरनचिह्न रघुबीर के संतन सदा सहायका।


संतों की सहायता के लिए राजाधिराज भगवान श्री रामचंद्र जी ने अपने चरण कमलों में सुख देने वाले इन चिह्नों को धारण किया है। मन रूपी उन्मत्त हाथी किसी भी प्रकार वश में नहीं आता, इसलिए भगवान ने अंकुश का चिह्न धारण किया है। मनोजय के लिए अंकुश का ध्यान करना चाहिए। 


जड़ता रूपी जाड़ा भक्तों को दुख देता है, इसलिए वस्त्रचिन्ह धारण करके प्रभु ने उनका शोक दूर किया, भक्तजन ध्यान करके सुख प्राप्त करें। इसी प्रकार पाप रूपी पहाड़ों को फोडऩे के लिए वज्र का चिह्न और भक्ति रूपी नवनिधि जोडऩे के लिए कमल का चिह्न धारण किया। 


जब चिह्न विद्या और सिद्धियों का दाता है, इसमें सुमति, सुगति और सुख-सम्पत्ति का निवास है, ध्यान करने वालों को इनकी प्राप्ति होती है। कलियुग की कुटिल गति देखकर भक्त लोग क्षणभर में ही भयभीत हो जाते हैं, विशेष करके उनको निर्भयता का विश्वास दिलाने के लिए भगवान ने अपने चरणों में ध्वजा का चिह्न धारण किया है। चतुर भक्तजन यदि हृदय के नेत्र गोपद चिह्न में लगाएं तो अपार भवसागर गाय के खुर के समान छोटा (सहज पार करने योग्य) हो जाता है और सभी संसारी कष्ट मिट जाते हैं। 


माया का कपट, माया की कुचाल और माया के सम्पूर्ण बल को जीतने के लिए प्रभु ने शंख चिन्ह धारण किया, इसका ध्यान करके भक्तों ने सहज ही माया को जीत लिया। 
भगवान ने काम रूपी निशाचर को मारने के लिए अपने चरण में चक्र चिन्ह धारण किया। ध्यान करने वाले मंगल और कल्याण के लिए स्वस्तिरेखा धारण की, ऐसा मानिए।  


अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष- चारों फलों का फल जंबूफल मंगल करने वाला और अनेक प्रकार की कामनाओं को पूर्ण करने वाला है, इसका नित्य ध्यान कीजिए। अमृत का कलश और अमृत का कुंड- ये चिह्न इसलिए धारण किए कि ध्याता के हृदय में भक्तिरस भरे। ध्यान नेत्र के कटोरे से पीकर सदा अमर रहें, भक्तजन मन में ध्यान करें। अर्धचंद्र के धारण का कारण यह जानिए कि वह ध्यान करने वाले के तीनों तापों को नष्ट करे और भक्ति को बढ़ाए।


काम आदि विषय रूपी सांप शरीर रूपी बांबी में बसते हैं, वे भक्तों को न डसें, इसलिए यह उपाय किया कि अष्टकोण, षट्कोण और त्रिकोण यंत्र चिह्नों को धारण किया, ऐसा जान कर जिस-जिसने हृदय में इनका ध्यान किया, वे विषयरूपी सर्प से बचे और जीवित रहे अर्थात उनका निरंतर भगवान में प्रेम बना रहा। 


भगवान श्री रामचंद्र ने अपने चरण कमल में मीन और बिंदु चिह्नों को वशीकरण यंत्र बनाकर धारण किया, इसी से बहुत से भक्तों के मन हरे जाते हैं। संसाररूपी सागर अपार है, जिसका कोई पार नहीं पा सकता, इसलिए ऊर्ध्व रेखा धारण कर पुल बांध दिया है। ध्यान करने वाले सहज में ही संसार सागर पार कर जाते हैं।


श्री राघवेन्द्र सरकार ने अपने श्री चरणों में इंद्रधनुष का चिन्ह धारण करके ध्यान करने वाले भक्तों का दुख दूर किया और रावण आदि अहंकारियों के अहंकार का भी धनुष से ही नाश किया, सो प्रसिद्ध है। पुरुषविशेष चिह्न अपने पद कमल में बसाया, उसका करण सुनिए और श्यामसुंदर को प्राप्त करने की अभिलाषा कीजिए। उनका कथन है कि हमारा भक्त यदि सरल मन वाला, सत्य, सरल वचन वाला और शुद्ध, सरल कर्मवाला हो तो इसी पुरुष चिन्ह के समान मैं चरण-शरण में रखूंगा। जो जन बुद्धिमान हों, रूप सम्पत्ति के रसिक हों, वे पूर्ववर्णित इन चरण चिन्हों का हृदय में ध्यान करके मुख से भगवान के नामों का उच्चारण करते रहें।    

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