जब राजा ने शनिदेव को नहीं बताया सर्व श्रेष्ठ देवता, तो मिला कुछ एेसा दंड

Edited By Punjab Kesari,Updated: 13 Jan, 2018 09:52 AM

story of shanidev and vikramaditya in hindi

एक बार की बात है कि सभी देवता गण में इस बात को लेकर कि उनमें सर्व श्रेष्ठ कौन है वाद-विवाद हो गया। उनका विवाद जब बढ़ने लगा तो वह तो उन्होंने देवराज इंद्र के पास जाने का निर्णय किया और सभी देवता गण उनके पास पहुंच गए।

एक बार की बात है कि सभी देवता गण में इस बात को लेकर कि उनमें सर्व श्रेष्ठ कौन है वाद-विवाद हो गया। उनका विवाद जब बढ़ने लगा तो वह तो उन्होंने देवराज इंद्र के पास जाने का निर्णय किया और सभी देवता गण उनके पास पहुंच गए। वहां जाकर सब उनसे इस बात का उत्तर मांगने लग कि उन में से सर्व श्रेष्ठ देवता कौन है। देवताओं की बात सुनक देवराज भी चिंता में पड़ गए की इनको क्या उत्तर दूं। फिर उन्होंने ने उन सब से कहा पृथ्वीलोक में उज्जैनी नामक एक नगरी है, वहां के राजा विक्रमादित्य जो न्याय करने में बहुत ज्ञानी माने जाते हैं। वह तुरंत ही दूध का दूध और पानी का पानी कर देते हैं। आप सब उनके पास जाईए वो आपकी शंका का समाधान अवश्य करेंगे |


  
सभी देवता गण देवराज इंद्र की बात मानकर विक्रमादित्य के पास पहुंचेऔर उनको सारी बात बताई, तो विक्रमादित्य ने अलग-अलग धातुओं सोना,तांबा, कांस्य, चंडी आदि के आसन बनवाए और सभी को एक के बाद एक रखने को कहा और सभी देवताओं को उन पर बैठने को कहा उसके बाद राजा ने कहा फैसला हो गया जो सबसे आगे बैठे हैं वो सबसे ज्यादा श्रेष्ठ हैं। इस हिसाब से शनिदेव सबसे पीछे बैठे थे, राजा की ये बात सुनकर शनिदेव बहुत ही क्रोधित हुए और राजा को बोला तुमने मेरा घोर अपमान किया है जिसका दंड तुम्हें अवश्य भुगतना पड़ेगा।

 

उसके बाद शनि देव समेत सभी देवता वहां से चले गए लेकिन शनिदेव अपने अपमान को भूल नहीं पाए। वह राजा विक्रमदित्य को दंड देना चाहते थे। राजा को दंड देने के लिए एक बार शनिदेव ने एक घोड़े के व्यापारी का रूप धारण किया और राजा के पास पहुंच गए। राजा को घोड़ा बहुत पसंद आया और उन्होंने वो घोड़ा खरीद लिया। पर जब वो उस पर सवार हुए तो घोडा़ तेजी से भागने लगा और राजा को एक घने जंगल में गिरा कर भाग गया। अब राजा विक्रमादित्य जंगल में अकेले भूखे प्यासे भटकते-भटकते एक नगर में जा पंहुंचे। वहां जब एक सेठ ने राजा की ये हालत देखी तो उसे राजा पर बहुत दया आई और वह उन्हें अपने घर ले गया। उस ही  दिन सेठ को अपने व्यापर में काफी मुनाफा हुआ। उसको लगा कि ये मेरे लिए यकीनन ही बहुत भाग्यशाली है। सेठ के घर में एक सोने का हार खूंटी से लटके हुए था। सेठ विक्रमादित्य को घर में कुछ देर अकेला छोड़ किसी काम से बाहर गया तो इस बीच खूंटी सोने के हार को निगल गई। सेठ जब वापस आया तो सोने के हार को न पाकर बहुत क्रोधित हुआ।

 

उसे लगा की विक्रमादित्य ने हार चुरा लिया वो उसे लेकर उस नगर के राजा पास गया और सारी बात बताई। राजा ने विक्रमादित्य से पूछा की ये सच है तो विक्रमादित्य ने बताया कि जिस खूंटी पर सोने का हार लटक रहा था वो खूंटी उस हार को निगल गई। राजा को इस बात पर बिल्कुल भरोसा नहीं हुआ और राजा ने विक्रमादित्य के हाथ-पैर काट देने की सजा सुना दी। अब विक्रमादित्य के हाथ को पैर काटकर नगर के चौराहे पर रख दिया गया। 

 

एक दिन उधर से एक तेली गुजरा उसने जब विक्रमादित्य की हालत देखी तो उसे बहुत दुख हुआ और वह उन्हें अपने घर ले आया। एक दिन राजा विक्रमादित्य मल्लहार गा रहे थे और उस ही रास्ते से उस नगर की राजकुमारी जा रही थी। उसने जब मल्लहार की आवाज सुनी तो वो आवाज का पीछा करते विक्रमादित्य के पास पहुंचीं और उनकी ये हालत देखकर बहुत दुखी हुई और अपने महल जा कर पिता से विक्रमादित्य से शादी करने की जिद्द करने लगी। 

 

पहले तो राजा को बहुत क्रोधित आया लेकिन फिर बेटी की जिद्द के आगे झुक कर उन दोनों का विवाह करा दिया। तब तक विक्रमादित्य पर शनि देव की साढ़े सती का प्रकोप भी समाप्त हो गया था फिर एक दिन शनिदेव विक्रमादित्य के स्वप्न में आए और बताया की ये सारी घटना उनके प्रकोप के कारण हुई। तब राजा ने कहा हे प्रभु! आपने जितना कष्ट मुझे दिया उतना किसी को न देना। शनि देव ने राजा को कहा जो शुद्ध मन से मेरी पूजा करेगा शनिवार का व्रत रखेगा वो हमेशा मेरी कृपा का पात्र रहेगा। सुबह हुई तो राजा के हाथ पैर वापस आ चुके थे, राजकुमारी ने जब यह देखा तो बहुत प्रसन्न हुई। अब राजा विक्रमादित्य और रानी उज्जैनी नगरी आए और नगर में घोषणा करवाई कि शनिदेव सबसे श्रेष्ठ हैं सब लोगो को शनिदेव का उपवास और व्रत रखना चाहिए।

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