Edited By Punjab Kesari,Updated: 20 Jan, 2018 05:09 PM
विचारों के महत्व से सभी विवेकशील लोग भली-भांति परिचित होते हैं, किंतु क्या अच्छे और ऊंचे विचारों का महत्व सुंदर शब्दों तक ही सिमट जाना चाहिए? क्या इन्हें जनमानस में रोपित कर उसे वैचारिक रूप से समृद्ध नहीं किया जाना चाहिए।
विचारों के महत्व से सभी विवेकशील लोग भली-भांति परिचित होते हैं, किंतु क्या अच्छे और ऊंचे विचारों का महत्व सुंदर शब्दों तक ही सिमट जाना चाहिए? क्या इन्हें जनमानस में रोपित कर उसे वैचारिक रूप से समृद्ध नहीं किया जाना चाहिए। इस धरा पर अनेक विचारक-चिंतक हुए हैं जिन्होंने समय-समय पर मानव जीवन के उत्थान के लिए कई कल्याणकारी विचार प्रकट किए।
आज दुनिया में इंसानों को किसी नए मानवीय, आध्यात्मिक और प्रगतिशील विचार की उतनी जरूरत नहीं है जितनी ऐतिहासिक विचारकों के विचारों को जीवन-व्यवहार में ढालने की। त्याग-तप का जीवन व्यतीत करते हुए जैसी विचार शृंखला पहले के महात्माओं ने प्रस्तुत की उसकी बराबरी आज का कोई भी विचारक नहीं कर सकता। मानव-जगत के समक्ष आज यह चुनौती है कि वह ऐसी विचार शृंखला को अपने व्यावहारिक-कार्मिक जीवन को संवारने में कैसे लगाए। महान विचार यदि सामान्य व्यक्तियों के जीवन में स्थायी रूप से आना शुरू हों तो जीवन जैविक गुणवत्ता से भर उठता है।
आज अधिकांश चिंतक, साधु-संत, महात्मा और गुणी-ज्ञानीजन अपने विचारों से तो लोगों को मुग्ध करते हैं, पर लोग ऐसे विचारकों और उनके विचारों को स्थायी रूप से अपने जीवन में उतार नहीं पाते हैं। यह एक सिद्ध बात है कि जो बातें आम लोग महान व्यक्तियों से सीखते हैं, उन्हें वे स्वयं भी कभी न कभी जरूर महसूस करते हैं। वे जो महसूस करते हैं वह केवल विचारों का बाह्य आकर्षण होता है। विचार उनके जीवन को चमत्कारिक तरीके से कैसे बदलें, इस प्रयोग में वे रुचि नहीं लेते।
इस तरह अधिकांश लोग उपयोगी विचारों के लाभ से वंचित रह जाते हैं। हमें सद्विचारों से अवश्य जुडना चाहिए। बुरे विचारों के उपजते ही व्यक्ति के हृदय में एक भय भी उपजता है कि वह गलत सोच रहा है। यदि वह अपने भय पर स्थिर होकर बुरे विचारों को त्याग दे व सद्विचारों की ओर मुड़ जाए तो यह स्थिति वैचारिक व्यावहारिकता का आंशिक परिचय होगी और फलत: जीवन में एक नई आनंद किरण चमकने लगेगी।