Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 Mar, 2018 12:38 PM
चैत्र नवरात्र शुरू होते ही विश्वभर के देवी मंदिरों में भक्तों की लंबी कतारें लगनी आरंभ हो जाती हैं। एेसा ही एक मंदिर हरिद्वार से तीन कि.मी. दूर शिवालिक पर्वतमाला पर बिलवा नामक पहाड़ी पर स्थित है, जहां चैत्र नवरात्र में भक्तों की भारी भीड़ देखने को...
चैत्र नवरात्र शुरू होते ही विश्वभर के देवी मंदिरों में भक्तों की लंबी कतारें लगनी आरंभ हो जाती हैं। एेसा ही एक मंदिर हरिद्वार से तीन कि.मी. दूर शिवालिक पर्वतमाला पर बिलवा नामक पहाड़ी पर स्थित है, जहां चैत्र नवरात्र में भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है। यह मंदिर मां मनसा देवी को समर्पित है, जिन्हें वासुकी नाग की बहन माना जाता है। इसका उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। मान्यता है कि मां मनसा देवी के सच्चे मन से प्रार्थनी करने वाले हर श्रद्धालु की इच्छा पूरा होती है। यह मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है व यहां देवी की दो प्रतिमाएं स्थापित हैं। एक प्रतिमा की पांच भुजाएं एवं तीन मुंह हैं। जबकि दूसरी प्रतिमा की आठ भुजाएं हैं।
मां मनसा देवी को माना जाता है वासुकी नाग की बहन
मनसा देवी संत कश्यप के मन व मस्तिष्क से अवतरित हुई थी, इसलिए वह मनसा कहलाईं। नाम के अनुसार मां मनसा देवी भक्तों की मनसा (इच्छा) पूर्ण करने वाली हैं।उन्हें नाग राजा वासुकी की पत्नी भी माना जाता है। हरिद्वार के चंडी देवी और माया देवी के साथ मनसा देवी को भी सिद्ध पीठों में प्रमुख माना जाता है। देवी मनसा ने भगवान शंकर की कठोर तपस्या करके वेदों का अध्ययन किया और कृष्ण मंत्र प्राप्त किया, जो कल्पतरु मंत्र कहलाता है। इसके बाद देवी ने कई युगों तक पुष्कर में तप किया। जिससे प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण ने उन्हें दर्शन देकर वरदान दिया कि तीनों लोकों में तुम्हारी पूजा होगी।
देवी की पूजा गंगा दशहरा के दिन बंगाल में भी की जाती है। कहीं-कहीं कृष्ण पक्ष पंचमी को भी देवी को पूजा जाता है। मान्यता है कि इस दिन घर के आंगन में नागफनी की शाखा पर मनसा देवी की पूजा करने से विष का भय नहीं रह जाता।
भक्त अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए यहां पेड़ की शाखा पर एक पवित्र धागा बांधते हैं। जब उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है तो दोबारा आकर धागे को खोलने भी जरूर आते हैं।
मंदिर से मां गंगा और हरिद्वार के समतल मैदान अच्छे से दिखते हैं। श्रद्धालु इस मंदिर तक केवल कार से पहुंच सकते हैं। यह केबल कार यहां ‘उड़नखटोला’ के नाम से प्रसिद्ध है। हरिद्वार शहर से पैदल आने वालों को करीब डेढ़ कि.मी. की खड़ी चढ़ाई चढ़ती पड़ती है। हालांकि मंदिर से कुछ पहले कार या बाइक से भी पहुंचा जा सकता है।