कल श्री हरि के आवेशावतार भगवान परशुराम के पूजन से भूमि-भवन में मिलेगा लाभ

Edited By Punjab Kesari,Updated: 06 Jan, 2018 10:02 AM

the benefits of the worship of lord parashurama

रविवार दि॰ 07.01.18 को माघ कृष्ण षष्टि पर उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र से बने सौभाग्य योग के उपलक्ष्य में भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुरामजी का पूजन श्रेष्ठ रहेगा। ऋषि जमदग्नि व देवी रेणुका के पुत्र परशुरामजी शौर्य

रविवार दि॰ 07.01.18 को माघ कृष्ण षष्टि पर उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र से बने सौभाग्य योग के उपलक्ष्य में भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुरामजी का पूजन श्रेष्ठ रहेगा। ऋषि जमदग्नि व देवी रेणुका के पुत्र परशुरामजी शौर्य, प्राक्रम व कर्मठता के स्वामी माने जाते हैं। पौराणिक व्रतांत अनुसार परशुराम ने पिता की आज्ञानुसार अपनी माता का शिरोच्छेद कर दिया था तथा अपने पिता महर्षि जमदग्नि से प्राप्त वर के बल पर परशुरामजी ने माता रेणुका को पुनर्जीवित किया व माता रेणुका की स्मृति को भी समाप्त किया और अपने भाइयों को चेतना-युक्त कर दिया परंतु परशुरामजी पर मातृहत्या का पाप चढ़ गया था। राजस्थान के चितौड़ जिले में स्थित मातृ कुण्डिया तीर्थ स्थान पर परशुराम मातृहत्या के पाप से मुक्त हुए। इस ही तीर्थ के पास स्वयं भू शिवलिंग स्थापित जहां है परशुरामजी ने महादेव का कठोर तप कर उनसे धनुष, अक्षय तूणीर एवं दिव्य फरसा प्राप्त किया था। इस तीर्थ का निर्माण स्वंय परशुराम ने पहाड़ी को अपने फरसे से काट कर किया था। विष्णु अवतार भगवान परशुरामजी के विधि-वत पूजन व उपाय से भूमि-भवन से लाभ मिलता है, दारिद्रय से मुक्ति मिलती है तथा शत्रु का विनाश होता है।

विशेष पूजन विधि: पूर्वमुखी होकर लाल कपड़े पर परशुराम का चित्र स्थापित कर पंचोपचार पूजन करें। तांबे की दिये में लाल तेल का दीप करें, तगर की धूप करें, रोली चढ़ाएं व अशोक के पत्ते चढ़ाएं तथा गुड़ की रोटी का भोग लगाएंं। किसी माला से इन विशेष मंत्र का 1 माला जाप करें।

पूजन मुहूर्त: शाम 17:34 से शाम 18:34 तक। (प्रदोष)


पूजन मंत्र: ॐ ब्रह्मक्षत्राय विद्महे क्षत्रियान्ताय धीमहि तन्नो परशुराम: प्रचोदयात्॥


उपाय
भूमि-भवन के लाभ हेतु परशुरामजी पर चढ़े 4 अंजीर किसी वृद्ध स्त्री को दान दें।


दारिद्रय से मुक्ति हेतु परशुरामजी पर चढ़े लाल गुंजा के बीज तिजोरी में रखें।


शत्रु के विनाश हेतु भोजपत्र पर रोली से शत्रु का नाम लिखकर परशुरामजी के निमित जला दें।


आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com

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