ऋषि विश्वामित्र द्वारा हुआ था नारियल का धरती पर अवतरण

Edited By Punjab Kesari,Updated: 03 Mar, 2018 03:39 PM

the coconut land was landed by rishi vishwamitra

हिंदू धर्म में नारियल को विशेष महत्व प्रदान है। कोई भी धार्मिक कार्य इसके बिना संपन्न नहीं किया जाता। लेकिन शास्त्रों में इसकी उत्तपति की कहानी मिलती है, जिसमें बताया गया है कि नारियल का इस धरती पर अवतरण ऋषि विश्वामित्र द्वारा किया गया था।

हिंदू धर्म में नारियल को विशेष महत्व प्रदान है। कोई भी धार्मिक कार्य इसके बिना संपन्न नहीं किया जाता। लेकिन शास्त्रों में इसकी उत्तपति की कहानी मिलती है, जिसमें बताया गया है कि नारियल का इस धरती पर अवतरण ऋषि विश्वामित्र द्वारा किया गया था। इसके बार में हर किसी को नहीं पता होगा तो आईए जानें इसके बारे में-


पौराणिक कथा
यह कहानी प्राचीन काल के एक राजा सत्यव्रत से जुड़ी है। सत्यव्रत एक प्रतापी राजा थे, जिनका ईश्वर में सम्पूर्ण विश्वास था। उनके पास सब कुछ था लेकिन उनके मन की एक इच्छा थी जिसे वे किसी भी रूप में पूरा करना चाहते थे।


वे चाहते थे की वे किसी भी प्रकार से पृथ्वीलोक से स्वर्गलोक जा सकें। स्वर्गलोक की सुंदरता उन्हें अपनी ओर आकर्षित करती थी, किंतु वहां कैसे जाना है, यह सत्यव्रत नहीं जानते थे। एक बार ऋषि विश्वामित्र  तपस्या करने के लिए अपने घर से काफी दूर निकल गए थे और लम्बे समय से वापस नहीं आए थे। उनकी अनुपस्थिति में क्षेत्र में सूखा पड़ा गया और उनका परिवार भूखा-प्यासा भटक रहा था। तब राजा सत्यव्रत ने उनके परिवार की सहायता की और उनकी देख-रेख की जिम्मेदारी ली।


जब ऋषि विश्वामित्र वापस लौटे तो उन्हें परिवार वालों ने राजा की अच्छाई बताई। वे राजा से मिलने उनके दरबार पहुंचे और उनका धन्यवाद किया। शुक्रिया के रूप में राजा ने ऋषि विश्वामित्र द्वारा उन्हें एक वर देने के लिए निवेदन किया। ऋषि विश्वामित्र ने भी उन्हें आज्ञा दी। तब राजा बोले की वो स्वर्गलोक जाना चाहते हैं, तो क्या ऋषि विश्वामित्र अपनी शक्तियों का सहारा लेकर उनके लिए स्वर्ग जाने का मार्ग बना सकते हैं? अपने परिवार की सहायता का उपकार मानते हुए ऋषि विश्वामित्र ने जल्द ही एक ऐसा मार्ग तैयार किया जो सीधा स्वर्गलोक को जाता था।


 
राजा सत्यव्रत खुश हो गए और उस मार्ग पर चलते हुए जैसे ही स्वर्गलोक के पास पहुंचे ही थे, कि स्वर्गलोक के देवता इन्द्र ने उन्हें नीचे की ओर धकेल दिया। धरती पर गिरते ही राजा ऋषि विश्वामित्र के पास पहुंचे और रोते हुए सारी घटना का वर्णन करने लगे। देवताओं के इस प्रकार के व्यवहार से ऋषि विश्वामित्र भी क्रोधित हो गए, परन्तु अंत में स्वर्गलोक के देवताओं से वार्तालाप करके आपसी सहमति से एक हल निकाला गया। इसके मुताबिक राजा सत्यव्रत के लिए अलग से एक स्वर्गलोक का निर्माण करने का आदेश दिया गया


 
ये नया स्वर्गलोक पृथ्वी  एवं असली स्वर्गलोक के मध्य में स्थित होगा, ताकि ना ही राजा को कोई परेशानी हो और ना ही देवी-देवताओं को किसी कठिनाई का सामना करना पड़े। राजा सत्यव्रत भी इस सुझाव से बेहद प्रसन्न हुए, किन्तु ना जाने ऋषि विश्वामित्र को एक चिंता ने घेरा हुआ था। उन्हें यह बात सत्ता रही थी  कि धरती और स्वर्गलोक के बीच होने के कारण कहीं हवा के ज़ोर से यह नया स्वर्गलोक डगमगा ना जाए। यदि ऐसा हुआ तो राजा फिर से धरती पर आ गिरेंगे। इसका हल निकालते हुए ऋषि विश्वामित्र ने नए स्वर्गलोक के ठीक नीचे एक खम्बे का निर्माण किया, जिसने उसे सहारा दिया।


 
माना जाता है की यही खम्बा समय आने पर एक पेड़ के मोटे तने के रूप में बदल गया और राजा सत्यव्रत का सिर एक फल बन गया। इसी पेड़ के तने को नारियल का पेड़ और राजा के सिर को नारियल कहा जाने लगा। इसीलिए आज के समय में भी नारियल का पेड़ काफी ऊंचाई पर लगता है। इस कथा के अनुसार सत्यव्रत को समय आने पर एक ऐसे व्यक्ति की उपाधि दी गई ‘जो ना ही इधर का है और ना ही उधर का। यानी कि एक ऐसा इंसान जो दो धुरों के बीच में लटका हुआ है।

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