प्ररेक कथा- क्रोध में किए हर काम का परिणाम होता है भयानक

Edited By Punjab Kesari,Updated: 14 Mar, 2018 05:27 PM

the result of every work done in anger is terrible

सूर्यवंश के सम्राट सगर की दो रानियां थी, लेकिन उन्हें कोई संतान नहीं थी। इसी कारण वह अधिक उदास रहते। एक दिन उनके कुल गुरु वशिष्ठ ने उनसे उदास रहने का कारण पूछा, वे बोले- गुरुदेव इतने बड़े साम्राज्य का कोई भी उत्तराधिकारी पैदा नहीं हुआ है।

सूर्यवंश के सम्राट सगर की दो रानियां थी, लेकिन उन्हें कोई संतान नहीं थी। इसी कारण वह अधिक उदास रहते। एक दिन उनके कुल गुरु वशिष्ठ ने उनसे उदास रहने का कारण पूछा, वे बोले- गुरुदेव इतने बड़े साम्राज्य का कोई भी उत्तराधिकारी पैदा नहीं हुआ है। मेरी उम्र भी बढ़ती जा रही है। ऐसे ही रहा तो मेरी वंश परंपरा खत्म हो जाएगी। कुल के पितरों का कोई तर्पण करने वाला भी न रहेगा।

 

गुरु वशिष्ठ ने कहा आपकी चिंता सही है। भगवान पर किसी का वश नहीं है। फिर भी अच्छे काम करने और ब्राह्मण व ऋषियों की सेवा करने पर पुण्य मिलता है। कई वर्षों तक राजा अपने राज्य में आने वाले सभी ऋषियों और ब्राह्मणों की सेवा करते रहे। एक बार उनके राज्य में महर्षि और्व आए। महाराज सगर ने बहुत दिनों तक उनकी सेवा की। वे बहुत खुश हुए। जब वे जाने लगे तो राजा सगर से बोले राजा आपकी सेवा से मैं बहुत खुश हूं। अापकी कोई इच्छा बताओ जो अब तक पूरी न हुई हो।

 

आपकी इस सेवा के पुण्य से वह जरूर पूरी होगी। सगर ने कहा ऋषिवर वैसे तो भगवान की बहुत कृपा है, लेकिन मुझे एक ही दुख है कि मेरी कोई संतान नहीं है। ऋषि ने कहा- राजा आपके यहां संतान जरूर होगी। आपकी रानी केशिनी को एक पुत्र होगा जो वीर, बुद्धिमान और साहसी होगा। दूसरी रानी सुमति के अनेकों वीर और साहसी पुत्र होंगे मगर वे स्वभाव से शरारती और गुस्से वाले होंगे। धैर्य न रख पाने के स्वभाव के कारण वे कभी-कभी सही और गलत के बीच का अंतर नहीं कर पाएंगे। ऐसा आशीर्वाद देकर ऋषि चले गए।

 

समय आने पर राजा सगर की दोनों रानियों को पुत्र हुए। कई वर्ष गुज़र जाने के बाद राजा ने अश्वमेध यज्ञ करवाने पर विचार किया। यज्ञ के लिए घोड़ा छोड़ा गया। राजा ने उस घोड़े की रक्षा का भार अपने पुत्रों को सौंप दिया। राजा सगर के इस यश से इ्ंद्र को जलन हुई। एक रात जब सारे राजकुमार आराम कर रहे थे। इंद्र ने चुपके से राजा का घोड़ा चुरा लिया और उस घोड़े को ले जाकर कपिल ऋषि के आश्रम में बांध दिया। कपिल मुनि उस समय ध्यान में बैठे थे। उन्हें कुछ पता नहीं चला कि कौन क्या करके जा रहा है।


जब सारे राजकुमार घोड़े की तलाश करते हुए कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे तो उन्हें घोड़े का चोर समझ बैठे। राजकुमारों ने बिना पूछे ही ये समझ लिया कि मुनि कपटी हैं। उन राजकुमारों में से एक ने ध्यान में बैठे मुनि को धनुष की नोंक चुभाई और भला बुरा कहा। इस तरह जब वे राजकुमार मुनि को बार-बार परेशान करने लगे तो उनका ध्यान टूट गया। तप के तेज से भरे मुनि ने जब आंखें खोलीं तो सारे राजकुमार जलकर भस्म हो गए। जब यह खबर राजा सगर तक पहुंची तो वे बहुत दुखी हुए।

 

सीख
कठिन परिस्थिति में भी धैर्य से काम लेना चाहिए।
.गुस्से में और बिना सोचे काम करने का परिणाम हमेशा भयानक होता है।

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