देवी दुर्गा का द्वितीय स्वरूप, कड़ी तपस्या के बाद बनी मां ब्रह्मचारिणी

Edited By ,Updated: 28 Mar, 2017 02:00 PM

the second form of goddess durga maa brahmacharini

देवी दुर्गा का यह दूसरा रूप भक्तों एवं सिद्धों को अमोघ फल देने वाला है। देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है।

देवी दुर्गा का यह दूसरा रूप भक्तों एवं सिद्धों को अमोघ फल देने वाला है। देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। माता ब्रह्मचारिणी की पूजा और साधना करने से कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है। ऐसा भक्त इसलिए करते हैं ताकि मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से उनका जीवन सफल हो सके और अपने सामने आने वाली किसी भी प्रकार की बाधा का सामना आसानी से कर सकें। आज नवरात्र का दूसरा दिन है। नवरात्र के दूसरे दिन माता के ब्रह्मचारिणी स्वरुप की पूजा की जाती है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली अर्थात तप का आचरण करने वाली मां ब्रह्मचारिणी। 


ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है। यह देवी शांत और निमग्न होकर तप में लीन हैं। मुख पर कठोर तपस्या के कारण तेज और कांति का ऐसा अनूठा संगम है जो तीनों लोको को उजागर कर रहा है। यह स्वरूप श्वेत वस्त्र पहने दाहिने हाथ में जप की माला एवं बायें हाथ में कमंडल लिए हुए सुशोभित है। ब्रह्मचारिणी देवी के कई अन्य नाम हैं जैसे तपश्चारिणी, अपर्णा और उमा। कहा जाता है कि देवी ब्रह्मचारिणी अपने पूर्व जन्म में राजा हिमालय के घर पार्वती स्वरूप में थीं। इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप से प्राप्त करने के लिए घोप तपस्या की थी। वह भगवान शिव को पाने के लिए 1000 साल तक सिर्फ फल खाकर रहीं और 3000 साल तक शिव की तपस्या सिर्फ पेड़ों से गिरी पत्तियां खाकर की। कड़ी तपस्या के कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया। 


मां जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए मां ब्रह्मचारिणी का मंत्र कंठस्थ कर नवरात्रि में द्वितीय दिन इसका जाप करना चाहिए।


मंत्र:
या देवी सर्वभू‍तेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थ:

हे मां! सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ।


ध्यान मंत्र:
वन्दे वांच्छितलाभायचन्द्रर्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलुधराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णास्वाधिष्ठानास्थितांद्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
धवल परिधानांब्रह्मरूपांपुष्पालंकारभूषिताम्॥
पद्मवंदनापल्लवाराधराकातंकपोलांपीन पयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीनिम्न नाभि नितम्बनीम्॥


स्तोत्र मंत्र:
तपश्चारिणीत्वंहितापत्रयनिवारिणीम्।
ब्रह्मरूपधराब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
नवचक्रभेदनी त्वंहिनवऐश्वर्यप्रदायनीम्।
धनदासुखदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रियात्वंहिभुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदामानदा,ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्।


कवच मंत्र:
त्रिपुरा में हृदयेपातुललाटेपातुशंकरभामिनी।
अर्पणासदापातुनेत्रोअर्धरोचकपोलो॥
पंचदशीकण्ठेपातुमध्यदेशेपातुमहेश्वरी॥
षोडशीसदापातुनाभोगृहोचपादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातुब्रह्मचारिणी॥

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