भारत में नहीं विदेश में स्थित है दुनिया का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर

Edited By ,Updated: 25 Jan, 2017 10:57 AM

the world famous angkor temples of cambodia

भगवान विष्णु को समर्पित कम्बोडिया का अंगकोर मंदिर अपने स्थापत्य, शिल्पकला, मूर्तकला एवं विशालता व भव्यता के लिए विश्व प्रसिद्ध है। सम्पूर्ण एशिया, प्रमुखत: दक्षिण-पूर्व एशिया में

भगवान विष्णु को समर्पित कम्बोडिया का अंगकोर मंदिर अपने स्थापत्य, शिल्पकला, मूर्तकला एवं विशालता व भव्यता के लिए विश्व प्रसिद्ध है। सम्पूर्ण एशिया, प्रमुखत: दक्षिण-पूर्व एशिया में अपने समय का यह सबसे बड़ा तीर्थ स्थल रहा है। भारत वर्ष से बहुत बड़ी संख्या में तीर्थ यात्री वर्ष भर ‘अंगकोर मंदिर’ में दर्शन, पूजन, अर्चन के लिए कम्बोडिया जाते थे क्योंकि भारतीय संस्कृति-परम्परा में तीर्थ यात्राओं का अत्यंत महत्व रहा है। भारत के अतिरिक्त एशिया के अन्य देशों के लोग भी इस मंदिर को देखने व श्रद्धा-भक्ति प्रकट करने पधारते थे। कम्बोडिया के इस भगवान विष्णु के मंदिर में कभी मंत्रोच्चार होता था, शंख ध्वनि गूंजा करती थी, घंटा-घडिय़ाल बजते थे, नगाड़ों की आवाज से वायुमंडल सहित समस्त समाज में स्फुरण होता था, वहीं मंदिर धीरे-धीरे वनों की छत्रछाया में विलुप्त हो गया, उस पर मिट्टी-कंकड़ों का आच्छादन हो गया और काल के प्रवाह में ऐसा अदृश्य हुआ कि उसका नाम ही लोग भूल गए।


लेकिन इतिहास का एक चक्र पूरा हुआ और प्राकृतिक कृपा से यह मंदिर एक बार पुन: प्रकट हुआ। इस क्षेत्र के निवासी जिन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया था, वे भी इसमें पूजन करने के लिए धूप-घी और बत्ती लेकर दौड़ पड़े लेकिन भारत से कम्बोडिया जाने के सभी मार्ग अवरुद्ध हो चुके थे। परिस्थितियां बदल गई थीं। सामान्य तीर्थ यात्रियों की तो कौन कहे, साधु-संतों के लिए भी अंगकोर का दर्शन करना संभव नहीं रहा।


भारत से कम्बोडिया के जिस स्थल मार्ग पर कभी भगवाधारी साधु महात्मा विष्णु सहस्रनाम का जप करते हुए अंगकोर का दर्शन करने के लिए जाते प्राय: मिल जाते थे, उन मार्गों पर सन्नाटा छा गया। कम्बोडिया पर कब्जा करने के बाद कम्युनिस्टों ने तो अंगकोर मंदिर को ही अपनी लड़ाई का केन्द्र बना दिया। स्थितियां सामान्य हो जाने पर भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने लाखों रुपए खर्च करके मंदिर के मूल स्थापत्य को संरक्षित करने का प्रयास किया। अंगकोर मंदिर की तीर्थ यात्रा का सबसे सुगम स्थल मार्ग मणिपुर के मोरेह ग्राम से प्रारम्भ होता था। मोरेह से पहले विष्णुपुर नामक ग्राम पड़ता है, जिसमें भगवान विष्णु का अति प्राचीन मंदिर आज भी स्थित है। इस मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद यह यात्रा शुरू होती थी। मोरेह भारत का अंतिम ग्राम है जो म्यांमार, ब्रह्मपुत्र की तटीय सीमा पर स्थित है।


मोरेह से मांडले की दूरी 375 मील है और यह सड़क मार्ग अब यातायात के लिए उपलब्ध है। मांडले से रंगून होते हुए थाईलैंड (प्राचीन, स्याम) के माईसेत का सड़क मार्ग भी उपलब्ध है। माइसेत से कम्बोडिया के अंगकोर तीर्थ स्थान तक सहज ही जाया जा सकता है। सड़क की स्थिति चाहे उतनी अच्छी नहीं है लेकिन तब भी इतना निश्चित है कि यदि प्रयास किया जाए तो भारत से म्यांमार व थाईलैंड होते हुए कम्बोडिया में अंगकोर मंदिर तक भी यह तीर्थयात्रा सैंकड़ों वर्ष बाद भी फिर से प्रारम्भ की जा सकती है। कम्बोडिया में लोगों का विश्वास है कि जो पुण्य सभी तीर्थ-स्थलों के दर्शनों से मिलता है वही पुण्य मात्र अंगकोर मंदिर के दर्शन से ही मिल जाता है।


जब अटल बिहारी वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री बने तब मेकांग, गंगा परिकल्पना के नाम से एक बार फिर भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के लोगों में पुराने सांस्कृतिक संबंधों को पुनर्जीवित करने का प्रयास हुआ था। तब यह भी आशा जगी थी कि संभवत: सैंकड़ों वर्षों बाद पुन: अंगकोर मंदिर की तीर्थयात्रा प्रारम्भ होगी। उनके शासन काल में जिस उत्साह और तेजी से इस परिकल्पना पर कार्य प्रारम्भ हुआ था, वह तेजी बाद में नहीं रही। इस स्थल मार्ग के खुल जाने से जहां एक ओर इस क्षेत्र के सभी देशों के लोगों में परस्पर सम्पर्क बढ़ेगा, वहीं पूरे क्षेत्र में प्रमुखत: पूर्वोत्तर भारत की अर्थव्यवस्था को भी बल मिलेगा। यह स्थल मार्ग  पूर्वोत्तर भारत और म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, वियतनाम और कम्बोडिया जैसे सभी देशों की आर्थिक व सांस्कृतिक गतिविधियों को सकारात्मक दृष्टि से प्रभावित करेगा।


वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार पूर्ण बहुमत प्राप्त है और उन्होंने भारत के पड़ोसी देशों को प्राथमिकता की श्रेणी में रखा है, अत: आशा है कि भविष्य में अंगकोर तीर्थ यात्रा का मार्ग प्रशस्त हो सकता है, यात्रा पुन: प्रारम्भ हो सकेगी। अंगकोर मंदिर तीर्थयात्रा का आयोजन भारत सरकार कम्बोडिया सरकार के साथ मिलकर कर सकती है। जैसे कैलाश मानसरोवर की तीर्थयात्रा का जिम्मा स्वयं भारत सरकार ने आधिकारिक स्तर पर संभाला हुआ है, जहां चीन का कब्जा है।


शताब्दियों से बंद रही तीर्थ यात्राओं और परम्पराओं की बहाली अति जीवट कार्य है, परन्तु जहां चाह वहां राह। वैसे इस तीर्थयात्रा को सामाजिक-सांस्कृतिक-धार्मिक संस्थाएं भी मिलकर व एकजुट होकर प्रारम्भ कर सकती हैं। वे संबंधित देशों से सहयोग प्राप्त कर सकती हैं। जम्मू-कश्मीर में सदियों से बंद पड़ी तीर्थ यात्राओं को पुनर्जीवित किया गया है। लद्दाख में सिंधु-दर्शन यात्रा पुन: प्रारम्भ कराई गई। अरुणाचल प्रदेश में परशुराम कुंड की तीर्थ यात्रा भी प्रारम्भ हुई। यद्यपि अंगकोर मंदिर तीर्थयात्रा उपरोक्त प्रारम्भ की गई तीर्थ यात्राओं से थोड़ी कठिन है, फिर भी इसे पुर्नस्थापित किया जा सकता है।

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