ये माला धारण करने से मिलता है पवित्र नदियों में स्नान और बहुत से यज्ञों का पुण्य

Edited By ,Updated: 20 Apr, 2017 08:29 AM

this garland takes place by bathing in sacred rivers

गले में तुलसी की माला धारण करने से शरीर में विद्युतशक्ति का प्रवाह बढ़ता है तथा जीव-कोशों द्वारा धारण करने के सामर्थ्य में वृद्धि होती है। प्रबल

गले में तुलसी की माला धारण करने से शरीर में विद्युतशक्ति का प्रवाह बढ़ता है तथा जीव-कोशों द्वारा धारण करने के सामर्थ्य में वृद्धि होती है। प्रबल विद्युतशक्ति के कारण धारक के चारों ओर चुम्बकीय मंडल विद्यमान रहता है। तुलसी शरीर की विद्युत संरचना को सीधे प्रभावित करती है। जीवनशक्ति बढ़ती है, बहुत से रोगों से मुक्ति मिलती है, शरीर निर्मल, रोगमुक्त व सात्त्विक बनता है। आवाज सुरीली होती है, गले के रोग नहीं होते, मुखड़ा गोरा, गुलाबी रहता है। तुलसी की माला धारक के व्यक्तित्व को आकर्षक बनाती है। हृदय पर झूलने वाली तुलसी माला फेफड़े और हृदय के रोगों से बचाती है। इसे धारण करने वाले के स्वभाव में सात्त्विकता का संचार होता है। कलाई में तुलसी का गजरा पहनने से नब्ज नहीं छूटती, हाथ सुन्न नहीं होता, भुजाओं का बल बढ़ता है। तुलसी की जड़ें कमर में बांधने से स्त्रियों को, विशेषतः गर्भवती स्त्रियों को लाभ होता है। प्रसव वेदना कम होती है और प्रसूति भी सरलता से हो जाती है। कमर में तुलसी की करधनी पहनने से पक्षाघात नहीं होता, कमर, जिगर, तिल्ली, आमाशय और यौनांग के विकार नहीं होते हैं।


शालग्राम पुराण के अनुसार, तुलसी की माला भोजन ग्रहण करते वक्त शरीर के किसी भी अंग को स्पर्श कर रही हो तो बहुत से यज्ञों का पुण्य एकसाथ मिलता है। तुलसी की माल पहन कर स्नान करने से पवित्र नदियों में स्नान करने का पुण्य प्राप्त होता है।


यदि तुलसी की लकड़ी से बनी हुई मालाओं से अलंकृत होकर मनुष्य देवताओं और पितरों के पूजनादि कार्य करे तो वह कोटि गुना फल देने वाला होते हैं। जो मनुष्य तुलसी की लकड़ी से बनी हुई माला भगवान विष्णु को अर्पित करके पुनः प्रसाद रूप से उसे भक्तिपूर्वक धारण करता है, उसके पाप नष्ट हो जाते हैं।


तुलसी दर्शन करने पर समस्त पापों का नाश होता है, स्पर्श करने पर शरीर पवित्र होता है, प्रणाम करने पर रोगों का निवारण करती है, जल से सींचने पर यमराज को भी भय पहुंचाती है, तुलसी का पौधा लगाने से जातक भगवान के समीप आता है। तुलसी को भगवद चरणों में चढ़ाने पर मोक्ष रूपी फल प्राप्त होता है।


तुलसी की महिमा बताते हुए भगवान शिव नारद जी से कहते हैं-
पत्रं पुष्पं फलं मूलं शाखा त्वक् स्कन्धसंज्ञितम्।
तुलसीसंभवं सर्वं पावनं मृत्तिकादिकम्।।

अर्थात तुलसी का पत्ता, फूल, फल, मूल, शाखा, छाल, तना और मिट्टी आदि सभी पावन हैं।

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