Bad Habits को छोड़ने का ये है सबसे आसान तरीका, आदत से लाचार अवश्य आजमाएं

Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Oct, 2017 09:27 AM

this is the easiest way to quit bad habit

किसी नगर में एक डाकू रहता था। वह रोज डाका डालता और उससे जो कुछ भी हासिल होता, उसी से अपना गुजारा करता। किंतु धीरे-धीरे वह अपने इस जीवन से परेशान होने लगा। वह सोचने लगा कि यह भी कोई जिंदगी है कि लूटकर दूसरों को भी दुखी करो और अपना जीवन भी जोखिम में...

किसी नगर में एक डाकू रहता था। वह रोज डाका डालता और उससे जो कुछ भी हासिल होता, उसी से अपना गुजारा करता। किंतु धीरे-धीरे वह अपने इस जीवन से परेशान होने लगा। वह सोचने लगा कि यह भी कोई जिंदगी है कि लूटकर दूसरों को भी दुखी करो और अपना जीवन भी जोखिम में डालो। आखिरकार एक दिन वह एक गुरु के पास पहुंचा और उनके चरणों में गिरकर बोला, ‘‘महात्मन्, मैं अपने जीवन से तंग आ गया हूं। न जाने कितने लोगों को मैंने लूटकर दुखी किया है। आप ही मुझे कोई मार्ग बताइए, जिससे मैं इस बुराई से बच सकूं।’’


गुरु ने स्नेहपूर्वक उसके सिर पर हाथ फेरा और बोले, ‘‘वत्स, यह तो बड़ा आसान है। तुमने अपनी बुराई को स्वीकार कर लिया, यही बड़ी बात है। बस अब तुम बुराई करना छोड़ दो तो उससे भी बच जाओगे।’’ 


डाकू ने उनकी बात सुनी और कहा, ‘‘ऐसा करने से मुझे शांति मिलेगी तो अच्छी बात है। मैं अपनी डाकूवृत्ति को छोडऩे की कोशिश करूंगा।’’


किंतु कुछ दिनों बाद वह पुन: लौटकर गुरु के पास आया और हताश स्वर में बोला, ‘‘महात्मन्, मैंने अपनी इस बुराई को छोडऩे का बहुत प्रयास किया, किंतु नहीं छोड़ पाया। मैं अपनी आदत से लाचार हूं। मुझे मन की शांति पाने का कोई और उपाय बताएं।’’ 


यह सुनकर गुरु तनिक मुस्कराए और बोले, ‘‘अच्छा ऐसा करो कि तुम्हारे मन में जो भी बात उठे, उसे कर डालो। किंतु अगले ही दिन उसे दूसरे लोगों से अवश्य कह दो।’’


यह सुनकर डाकू बहुत प्रसन्न हुआ कि अब वह बेधड़क डाका डालेगा और दूसरों से कह कर अपने मन का बोझ हल्का कर लेगा। कुछ दिन बीतने पर वह फिर गुरु के पास पहुंचा और बोला, ‘‘गुरु जी! बुरा काम करना जितना मुश्किल है, उससे कहीं अधिक मुश्किल है दूसरों के सामने अपनी बुराइयों को कहना। इसलिए दोनों में से मैंने आसान रास्ता चुना है। डाका डालना ही छोड़ दिया है।’’ 


कथा का सार यह है कि बुराइयों को स्वीकार करने से बेहतर उनका त्याग है क्योंकि स्वीकारने से मन हल्का तो होता है, किंतु अपराध भाव से पूर्णत: मुक्ति नहीं मिल पाती। यह मुक्ति त्याग में ही निहित है। 

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