Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 Mar, 2018 10:06 AM
किसी नगर में एक विद्वान साधु रहता था। लोग उसके पास अपनी समस्याएं लेकर आते और समाधान पाकर प्रसन्नचित होकर लौट जाते। एक दिन एक सेठ साधु के पास आकर बोला, ‘‘महाराज, मेरे पास किसी चीज की कमी नहीं है, फिर भी मेरा मन अशांत रहता है।
किसी नगर में एक विद्वान साधु रहता था। लोग उसके पास अपनी समस्याएं लेकर आते और समाधान पाकर प्रसन्नचित होकर लौट जाते। एक दिन एक सेठ साधु के पास आकर बोला, ‘‘महाराज, मेरे पास किसी चीज की कमी नहीं है, फिर भी मेरा मन अशांत रहता है। कृपया बताएं कि मैं क्या करूं?’’ यह सुनते ही साधु उठा और चल पड़ा। सेठ भी उसके पीछे-पीछे चलने लगा।
आश्रम के एक खाली कोने में जाकर साधु ने आग जलाई और धीरे-धीरे उसमें एक-एक लकड़ी डालता रहा। हर लकड़ी के साथ आग की लौ तीव्र होती रही। कुछ देर बाद वह वहां से वापस अपनी जगह पर आकर चुपचाप बैठ गया। सेठ भी साधु के पास आकर दोबारा बैठ गया। किंतु जब साधु ने उससे कुछ भी न कहा तो सेठ को बहुत हैरानी हुई। वह हाथ जोड़कर विनम्रता से बोला, ‘‘महाराज, मैं आपके उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा हूं।’’
सेठ के ऐसा कहने पर साधु मुस्करा कर बोला, ‘‘मैं इतनी देर से तुम्हारा उत्तर ही तो दे रहा था। तुम्हारी समस्या का ही समाधान कर रहा था किंतु शायद तुम्हें समझ नहीं आया। अब मैं तुम्हें विस्तारपूर्वक बताता हूं। देखो, हर व्यक्ति के अंदर आग होती है। उसमें प्यार की आहुति डालें तो वह मन को शांति और आनंद देती है।यदि उसमें दिन-रात काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद की लकडिय़ां डाली जाती रहें तो वह मन में अशांति उत्पन्न करती हैं और आग को भड़काती हैं। जब तक तुम अशांति फलाने वाले इन तत्वों को आग में डालना बंद नहीं करोगे, तब तक तुम्हारा मन शांत नहीं होगा।’’ यह सुनकर सेठ की आंखें खुल गईं। उसे अपनी समस्या का समाधान मिल गया था। वह साधु को नमस्कार कर प्रसन्नचित घर लौट आया। उसने आगे से अपने अंदर की आग में प्रेम की आहुति डालने का संकल्प किया।