Edited By ,Updated: 24 Mar, 2017 12:47 PM
संत नजीर ईश्वर के परम भक्त थे। वे बेहद सादगी भरा जीवन जीते थे। उनके सद्गुणों के कारण उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली थी। उनका ईश्वर में परम विश्वास था और मानना था कि भगवान जो
संत नजीर ईश्वर के परम भक्त थे। वे बेहद सादगी भरा जीवन जीते थे। उनके सद्गुणों के कारण उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली थी। उनका ईश्वर में परम विश्वास था और मानना था कि भगवान जो कुछ करते हैं, भलाई के लिए ही करते हैं। दीन-दुखियों की सेवा को वह ईश्वर की सेवा मानते थे। संत नजीर पेशवा राजकुमारों को पढ़ाने जाया करते थे। उनके आने-जाने के लिए पेशवा ने एक घोड़ी भी दे रखी थी। अक्सर वह इसी घोड़ी से ही राजकुमारों को पढ़ाने के लिए जाया करते थे। एक बार वे राजकुमारों को पढ़ाने के बाद अपना वेतन लेकर घोड़ी पर सवार होकर जा रहे थे कि रास्ते में उन्हें एक वृद्ध मिला।
वह कुछ परेशान-सा लग रहा था। उसने नजीर को रोका और प्रार्थना की कि वह उसकी कुछ आर्थिक सहायता करे। पूछने पर उसने बताया कि उसे अपनी लड़की का विवाह करना है। यदि उसे कुछ रुपए मिल जाएं तो वह विवाह के काम आ सकेंगे। नजीर बोले, ‘‘बाबा! तुम्हारी जरूरत को मेरी जरूरत समझो। मैं तुम्हारे काम आ सकूं यह तो मेरा सौभाग्य है। ईश्वर की ही इच्छा थी कि हम दोनों की मुलाकात हो।’’
आज संयोग भी अच्छा है। मेरी गांठ में अच्छी-खासी रकम है। इसे लो और अपनी बेटी का विवाह करो। उन्होंने अपना पूरा वेतन उस बूढ़े व्यक्ति को दे दिया। उस बूढ़े ने स्वप्र में भी सोचा नहीं था कि एक अनजान व्यक्ति से ही उसे इतना रुपया मिलेगा। नजीर की उदारता देख उसकी आंखों में आंसू आ गए।
उसने उन्हें बार-बार धन्यवाद दिया। यह देख नजीर बुदबुदाए- ‘दौलत जो तेरे पास है, रख याद तू यह बात। खा तू भी और अल्लाह की कर राह में खैरात।’ नजीर आज अपने आपको बहुत भाग्यवान महसूस कर रहे थे क्योंकि उनकी दृष्टि में इस तरह का सहयोग कन्यादान से कम नहीं था।