संत तिरूवल्लुवर की इस सीख ने अभिमानी युवक के मन को किया निर्मल

Edited By Punjab Kesari,Updated: 01 Feb, 2018 05:33 PM

this learning of saint thiruvalluvar made the arrogant young mans mind pure

क्षमा तथा प्रेम मनुष्य के दो एेसे गुण हैं, जिनसे बड़े से बड़े अंहकार के मन को जीता जा सकता है। यह कहानी दक्षिण भारत के एेसे ही संत तिरूवल्लुवर की है जो बहुत क्षमाशील और उदार दे। तिरूवल्लुवर जात के जुलाहे थे

क्षमा तथा प्रेम मनुष्य के दो एेसे गुण हैं, जिनसे बड़े से बड़े अंहकार के मन को जीता जा सकता है। यह कहानी दक्षिण भारत के एेसे ही संत तिरूवल्लुवर की है जो बहुत क्षमाशील और उदार दे। तिरूवल्लुवर जात के जुलाहे थे एक दिन वह अपनी बुनी हुई साड़ियों को बेचने बाजार गए। साड़ियां बेचने के लिए वे एक स्थान पर बैठ दए। काफी समय तक कोई ग्राहक नहीं आया। परंतु बहुत प्रतीक्षा करते रहे, अचानक एक युवक साड़ी खरीदने के लिए आया। वह धनी परिवार का था। उसने संत जी के बारे में काफी सुन रखा था कि वे बहुत धैर्यवान व्यक्ति हैं। वास्तव में वो उनकी परीक्षा लेने आया था। उस व्यक्ति ने एक सुंदर साड़ी उठाई और उसका मूल्य पूछा। संत ने उसका मूल्य दस रुपए बताया। 

 

उसने साड़ी के दो टुकड़े कर दिेए फिर उसकी कीमत पूछी तो संत ने प्रत्येक टुकड़े का मूल्य पांच-पांच रुपए बताया। फिर उस आदमी ने उसके और दो टुकड़े कर दिए और कीमत पूछी तो संत ने बिना क्रोध किए प्रत्येक टुकड़े का मूल्य अढ़ाई रुपए बता दिया। अब उस आदमी ने उसके और टुकड़े कर मूल्य पूछा तो संत ने बिल्कुल भी परेशान न होते हुए उसका मूल्य सवा-सवा रुपए बताया। इस तरह वह साड़ी के टुकड़े करता रहा और सोचता रहा कि कभी तो संत को गुस्सा आएगा। पर संत तनिक भी परेशान व क्रोधित न हुए और बिना अपना धैर्य खोते हुए मूल्य बताते रहे। 

 

अंत में फटते-फटते साड़ी के स्थान पर मात्र टुकड़े ही रह गए। उस आदमी ने अब सब टुकड़ो को एकत्रित किया और कहा कि अब तो साड़ी में बचा ही क्या है जो इसका मूल्य दिया जाए। संत फिर भी शांत भाव में बैठे रहे। संत की शांत स्वभाव को देख अभिमानी युवक उन्हें दस रूपएे देते हुए बोला यह लो साड़ी का मूल्य मैंने तुम्हारी साड़ी फाड़ दी है इसलिए मूल्य दे रहा हूं।

 

संत ने शांत स्वर में कहा कि जब तुमने साड़ी ली ही नहीं तो मूल्य कैसा। संत के मुख से एेसी बात सुनकर अभिमानी युवक ने की विनम्रतापूर्वक संत से अपने अपराध की क्षमा मांगी। तब तिरूवल्लुवर ने उस युवक से प्रेमपूर्वक बोले, तुम्हारे दस रुपएे देने से साड़ी का मूल्य नहीं भर पाएगा। जरा सोचो कपास पैदा करने में किसान कितनी मेहनत करता है। कपास को धुनने और सूत कातने में कितना समय और श्रम लगता है। इस साड़ी को बुनने में मेरे परिवार ने कितनी कठिनाई उठाई होगी। 

 

युवक रोते हुए संत के चरणों में गिर पड़ा और पूछने लगा कि जब मैं साड़ी फाड़ रहा था तो आपने मुझे रोका क्यों नहीं। संत ने कहा कि मेरे रोकने से अापको यह सीख नही मिलती जो अब मिली। इसके बाद उस अभिमानी व्यक्ति के मन में संत के प्रति इज्जत और श्रद्धा भावना पैदा हो गई। संत की इस सीख से उसके मन का अंहकार समाप्त हो गया और उसका मन निर्मल हो गया। 

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