Sunday को कुछ पलों में किया गया ये काम, करेगा भयावह रोगों का संहार

Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Oct, 2017 12:24 PM

this work done in a few moments on sunday

पूर्व वैदिक, वैदिक और वेदोत्तर काल में प्रत्यक्ष देव महारुद्र सूर्य की स्तुति से असाध्य भयावह रोगों से मुक्ति एवं कायाकल्प का विवरण मिलता है। प्राचीन मिस्र एवं यूनानी संस्कृति में सूर्य को मृत संजीवनी माना गया है। प्राचीन मिस्र के ‘रॉ’ अर्थात...

पूर्व वैदिक, वैदिक और वेदोत्तर काल में प्रत्यक्ष देव महारुद्र सूर्य की स्तुति से असाध्य भयावह रोगों से मुक्ति एवं कायाकल्प का विवरण मिलता है। प्राचीन मिस्र एवं यूनानी संस्कृति में सूर्य को मृत संजीवनी माना गया है। प्राचीन मिस्र के ‘रॉ’ अर्थात ‘सूर्य’ प्रमुख देवता रहे हैं। ऋग्वेद के प्रथम मंडल के 50वें सूक्त, मंत्र 11-13 में प्रार्थना की गई है। सूर्य उदित होकर और उन्नत आकाश में चढ़कर हमारे मानस रोग (हृदयस्थ), पीत वर्ण रोग और शरीर रोग को नष्ट करो। आदित्य मेरे अनिष्टकारी रोग विनाश के लिए समस्त तेज के साथ उदित हुए हैं। मैं अपने हरिमाण तथा शरीर रोग को शुक एवं सारिका पक्षियों पर न्यस्त करता हूं।


अथर्ववेद में आदित्य को रुद्र रूप से लिखा है : प्राची दिगग्रिरधिपतिसितो रक्षितादिव्या इषव:। वही अथर्ववेद में आदित्य यानी रुद्र का उल्लेख मिलता है। ये सपत्ना अप ले भवन्तिन्द्रग्रिभ्यामव बाधामह एनान। आदित्य रुद्रा उपरिस्पृशो न उग्रं चेत्तारमधिराजमऋत।।


ऋग्वेद में भुनस्य पिता रुद्र: आदि लिखा है। महारुद्र के तीन नेत्रों में सूर्य, चंद्र और अग्रि बताए गए हैं। रुद्र को अनंत ब्रह्मांड स्वामी (जगतांपति) माना गया है। रुद्र की उपमा सूर्य से दी गई है। वैदिक रुद्र भव (सबका उत्पादक), शर्व (सबका संहारक), मयस्कर (सुख प्रदायक) है। भुवनस्य पितरं रुद्रं सभी सूर्यों के प्रसवकर्ता सविता की ओर संकेत किया है।


अथर्ववेद की संहिता में रोग निवारण के अनेक मंत्र हैं। अथर्ववेद का मंत्र है : अनु सूयमुदयतां हृदद्योतोहरिमा च ते। गो रोहितस्य वर्णेन तेन त्वा परिध्मसि।


सूर्य हृदय में जलन उत्पन्न करने वाले हृदय रोग और शरीर में पीलापन लाने वाले हरिमा रोग को दूर करते हैं। ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद् और तंत्र शास्त्र में सूर्य देवता की अर्चना से सभी कामनाओं और रोगों के शमन प्राप्ति की विधि मिलती है। 


छान्दोग्योपनिषद में कौषीतकि ऋषि ने सूर्य आराधना से पुत्र प्राप्ति की। अक्ष्युपनिषद, सूर्यों उपनिषद, मंत्रायण्युनिषद, गायत्री रहस्योपनिषद्, चाक्षुषोपनिषद, मैत्रायण्युपनिषद, श्वेताश्वतरोपनिषद् आदि में सूर्य के चमत्कारिक मंत्रों से स्तुति की गई है। जैसे : ॐ चक्षु: चक्षु: चक्षु: तेज: स्थिरो भव। मां पाहि पाहि। त्वरितं चक्षु रोगन शमय शमय। मम जातरूपं तेजो दर्शय दर्शय।


ऋग्वेद से उपनिषद निगमों में महारुद्र सूर्य की स्तुति अक्षर की असाधारण शक्ति से साक्षात्कार करवाती हैं। प्रकारांतर में एकाक्षरनामकोश संग्रह में उमा महेश्वर संवाद में सूर्य अग्रि का बीजाक्षर ‘र’ है (मिस्र में सूर्य को रॉ कहा गया) अत: सूर्य देवता बीजाक्षर मंत्र रं हुआ। पौराणिक काल की रचनाओं सूर्यगीत आदि और रामायण, महाभारत में सूर्य की चमत्कारिक आराधना और अभीष्ट सिद्धि कायाकल्प की कथाएं मिलती हैं। उत्तर सौरपुराण, मत्स्यपुराण, मार्तंड पुराण आदि में भी केवल सूर्य आराधना से सर्व रोगों और कष्टों से छुटकारे के दृष्टांत मिलते हैं। भविष्य पुराण के सूर्यनाम स्रोत में ब्रह्मा ने स्तुति में अन्य के अलावा रोगमुक्ति चाही है।


इसी पुराण में साम्ब ऋषि ने कुष्ठ से मुक्ति के लिए सूर्य आराधना की। देवराज इंद्र ने ब्रह्मवैवर्तपुराण में व्याधिनाश के लिए सूर्य कवच साधना की। स्कंद पुराण में मुनि नारद ने वृद्धावस्था से छुटकारे के उद्देश्य से सूर्य को प्रसन्न किया। महामुनि व्यास ने सभी तरह के रोगों-व्याधियों, सभी प्रकार के ज्वरों (बुखार, कैंसर) आदि से मुक्ति के उद्देश्य से सूर्य अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र का पाठ किया। साम्ब पुराण के अनुसार ब्रह्मा ऋषि ने 100 वर्ष की आयु के लिए भगवान सूर्य की अर्चना की।


भविष्योत्तर पुराण में योगीराज श्री कृष्ण ने अर्जुन को और रामायण में अगस्त्य मुनि ने जय विजय के लिए श्री आदित्य हृदय स्तोत्र का गुप्त ज्ञान दिया। याज्ञवलक्य मुनि ने रोग मुक्ति के लिए सूर्य कवच स्रोत का आह्वान किया।


आगम ग्रंथों में सूर्यदेव को नवग्रह, बारह राशियों और सत्ताइस नक्षत्रों में सबसे उत्तम, शक्तिवान और सबका प्रमुख बताया गया है। सूर्य रक्षात्मक स्रोत में सूर्य से सिर, ललाट, नेत्र, श्रवण, नासिका, मुख, जिह्वा, कंठ, स्कंद आदि सभी अंगों की रक्षा की प्रार्थना की गई : शिरो में भास्कर : पातु ललाटंमेमितद्युति:।


सूर्य की चर्मरोग, विशेषकर कुष्ठ रोग को दूर करने के लिए आराधना की परम्परा है। ‘नमो भगवते सूर्य कुष्ठरोगान विखंडम (आदित्यहृदयम)।’ योगीराज श्री कृष्ण ने ब्रह्म, ऋषि विश्वामित्र भृगुवंशी द्वारा हाटकेश्वर में स्थापित मार्तंड सूर्य को सर्वकुष्ठ (विनाशक) कहा।


चंद्रभागा नदी के तट पर साम्ब ने चर्म रोग से मुक्ति के लिए सूर्य मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की शकद्वीप से मग ब्राह्मणों को साम्ब ने पौराहित्य के लिए बुलाया। असुरराज माली-सुमाली ने भी स्वस्थ होने के लिए भुवन भास्कर की शरण ली। राजा नंद, राजा भद्रेश्वर ने भयानक चर्म रोग से परेशान होकर सविता सूर्य की आराधना कर नवजीवन पाया। मार्कंडेय पुराण में सूर्य को आरोग्य का देव माना गया है। शापजनित ब्रह्मापुत्र ब्रह्म ऋषि नारद को कुमारावस्था की पुन: प्राप्ति के लिए दिवाकर को प्रसन्न करना पड़ा। शत आयु भी सूर्य ही देता है। सर्वदेवात्मक सूर्य को आगामों में सर्वरोग निवारक की संज्ञा दी है।

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!