Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Mar, 2018 10:17 AM
जालंधर, (पांडे): श्री रामशरणम आश्रम 17 लिंक रोड द्वारा साईंदास ग्राऊंड में आयोजित श्री रामायण ज्ञान यज्ञ के चौथे दिन श्रीमती रेखा विज द्वारा स्वामी सत्यानंद जी द्वारा रचित श्री रामायण की चौपाइयों का पाठ किया गया। चौपाइयों की व्याख्या करते हुए श्री...
जालंधर, (पांडे): श्री रामशरणम आश्रम 17 लिंक रोड द्वारा साईंदास ग्राऊंड में आयोजित श्री रामायण ज्ञान यज्ञ के चौथे दिन श्रीमती रेखा विज द्वारा स्वामी सत्यानंद जी द्वारा रचित श्री रामायण की चौपाइयों का पाठ किया गया। चौपाइयों की व्याख्या करते हुए श्री कृष्ण विज ने कहा कि राम जी ने अपनी रोती मां कौशल्या को समझाकर शांत करते हुए वन को जाने की आज्ञा ले चल पड़ते हैं। राम जी सीता को घर में रहने का उपदेश देते हैं लेकिन सीता जी साथ वन में जाने का आग्रह करती हैं। राम, लक्ष्मण और सीता तीनों वन के लिए सुमंत के रथ पर सवार होने चलते हैं तो अयोध्या के नर-नारी भी साथ चलना शुरू कर देते हैं। कोई रोकता है, राम हमको छोड़कर मत जाओ। सबको समझाते हुए जब कौशल देश की सीमा पर पहुंचते हैं तो रथ से उतरकर धरती मां को प्रणाम करते हुए कहते कि हे मां, मैं जल्दी वापस आऊंगा।
जब गंगा के किनारे पहुंच जाते हैं तो वहां उनकी मुलाकात निषादराज से होती है निषादराज उनसे प्रार्थना करता है कि आज से आप राज को संभालें लेकिन राम जी उसे अपने आशीर्वचन से संतुष्ट करते हैं कि हम कंदमूल ही खाएंगे। श्री कृष्ण विज ने साधकों से कहा कि काम करने के लिए शर्म नहीं करनी चाहिए। काम कोई छोटा-बड़ा नही होता। हिंदू धर्म का पतन तब हो गया जब हमारे पथ प्रदर्शक, हमें सत्य का मार्ग बताने वालों ने धर्म को अपनी जीविका का साधन बना लिया।
भारद्वाज के आश्रम में रात बिताने के बाद प्रातः आगे चल देते हैं। इधर सुमंत वापस अयोध्या पहुचते हैं और राजा दशरथ को राम जी का हाल बताते है। राम वियोग में राजा दशरथ अपने प्राणों को त्याग देते है।
जब बरसात भी न रोक पाई साधकों की आस्था को
सायं की सभा के दौरान खराब मौसम के चलते कथा के दौरान बारिश शुरू हो गई। टैंट से बारिश का पानी टिपटिप साधकों के ऊपर पड़ रहा था लेकिन साधक चल रही राम कथा में मग्न रहे। इस दौरान कुछ लोग कह रहे थे कि बारिश भी नहीं रोक पाई साधकों की आस्था को। वाटरप्रूफ टैंट के बाद लगे सिम्पल टैंट में लोग बैठे रहे। आज की सभा का विश्राम सर्व शक्तिमते परमात्मने श्री रामाय नम: के साथ हुआ।