श्री कृष्ण को पाने के लिए करें इस महामंत्र का जाप

Edited By ,Updated: 30 Mar, 2017 02:54 PM

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श्रद्धा और इंद्रिय संयम जरूरी श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप व्यायाकार : स्वामी प्रभुपाद

श्रद्धा और इंद्रिय संयम जरूरी


श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप
व्यायाकार : स्वामी प्रभुपाद 
अध्याय 4 (दिव्यज्ञान)

श्रद्धावांल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति।।39।।


शब्दार्थ : श्रद्धा-वान्—श्रद्धालु व्यक्ति; लभते—प्राप्त करता है; ज्ञानम्—ज्ञान; तत्-पर:—उसमें अत्यधिक अनुरक्त; संयत—संयमित; इंद्रिय:—इन्द्रियां; ज्ञानम्—ज्ञान; लब्ध्वा—प्राप्त करके; पराम्—दिव्य; शांतिम्—शान्ति; अचिरेण—शीघ्र ही; अधिगच्छति—प्राप्त करता है।


अनुवाद : जो दिव्य ज्ञान में समर्पित है और जिसने इंद्रियों को वश में कर लिया है, वह इस ज्ञान को प्राप्त करने का अधिकारी है और इसे प्राप्त करते ही वह तुरंत आध्यात्मिक शांति को प्राप्त होता है।


तात्पर्य : श्रीकृष्ण में दृढ़ विश्वास रखने वाला व्यक्ति ही इस तरह का कृष्णभावनाभावित ज्ञान प्राप्त कर सकता है। वही पुरुष श्रद्धावान कहलाता है जो यह सोचता है कि कृष्णभावनाभावित होकर कर्म करने से वह परमसिद्धि प्राप्त कर सकता है। यह श्रद्धा भक्ति के द्वारा तथा हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे-मंत्र के जाप द्वारा प्राप्त की जाती है क्योंकि इससे हृदय की सारी भौतिक मलिनता दूर हो जाती है।

इसके अतिरिक्त मनुष्य को चाहिए कि अपनी इंद्रियों पर संयम रखे। जो व्यक्ति कृष्ण के प्रति श्रद्धावान है और जो इंद्रियों को संयमित रखता है, वह शीघ्र ही कृष्ण भावनामृत ज्ञान में पूर्णता प्राप्त करता है।

(क्रमश:)

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