गुरु तेग बहादुर जी शहीदी दिवस आज: जानें, क्यों कहलाते हैं ये ‘हिंद दी चादर’

Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Nov, 2017 08:17 AM

today guru tegh bahadur ji martyrdom day

श्री गुरु तेगबहादुर जी को ‘हिंद दी चादर’ कहा जाता है, क्योंकि आप जी ने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दे दिया था। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपनी कलम से लिखा है : तिलक जंझू राखा प्रभु ताका। कीनो बडो कलू महि साका। साधनि हेति इति जिनि...

श्री गुरु तेगबहादुर जी को ‘हिंद दी चादर’ कहा जाता है, क्योंकि आप जी ने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दे दिया था। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपनी कलम से लिखा है : 


तिलक जंझू राखा प्रभु ताका।
कीनो बडो कलू महि साका।
साधनि हेति इति जिनि करी।
सीसु दिया पर सी न उचरी।
धर्म हेतु साका जिनि किया।
सीसु दिया पर सिररु न दिया।
तथा प्रकट भए गुरु तेग बहादुर।
सगल स्रिस्ट पै ढापी चादर।


गुरु जी का प्रकाश श्री गुरु हरगोबिंद साहिब के घर 1621 ई. को माता नानकी जी की कोख से हुआ। गुरु जी बचपन से ही वैराग्य की तस्वीर थे, परंतु करतारपुर साहिब में गुरु हरगोबिंद साहिब जी के साथ मुगलों की हुई लड़ाई में आपने अपनी तलवार के ऐसे जौहर दिखाए कि गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने खुश होकर आप जी का नाम त्याग मल्ल जी से बदलकर (गुरु) तेग बहादुर (साहिब जी) रख दिया। 


गुरु हरगोबिंद साहिब जी के बाद आप जी के भतीजे गुरु हरिराय जी को गुरु गद्दी मिली तथा उनके बाद आप जी के पौत्र गुरु हरिकृष्ण जी सिखों के आठवें गुरु बने। गुरु हरिकृष्ण जी ने दिल्ली में ज्योति जोत समाने के अवसर पर अपने दादा तथा गद्दी के अगले वारिस के तौर पर बाबा बकाले का संकेत दिया था। इस कारण भाई मक्खन शाह लुबाणा ने गुरु जी को प्रकट किया था। इस तरह श्री गुरु तेग बहादुर जी सिखों के नौवें गुरु बने।


आप जी ने कई वर्ष तक बाबा बकाला नगर में घोर तपस्या की। आप जी की माता नानकी जी तथा पत्नी माता गुजरी भी आपके संग रहे। गुरु तेग बहादुर जी के घर एक पुत्र श्री गुरु गोबिंद राय (सिंह जी) का प्रकाश हुआ। गुरु जी ने आनंदपुर साहिब नामक नगर बसाया तथा वहीं पर औरंगजेब के जुल्मों के सताए हुए कुछ कश्मीरी ब्राह्मण पंडित कृपा राम जी के नेतृत्व में प्रार्थी बनकर उपस्थित हुए। दरअसल, औरंगजेब हिंदुओं को मुसलमान बनने के लिए विवश कर रहा था तथा अपना धर्म बचाने के लिए कश्मीरी ब्राह्मण गुरु जी के पास आए। इनके निवेदन को स्वीकार करते हुए गुरु जी ने अपना बलिदान देने का निश्चय कर लिया।


यह बहुत ही विलक्ष्ण बात है कि गुरु जी अपने हत्यारे के पास स्वयं चलकर पहुंचे। गुरु जी के साथ गए भाई मतीदास जी को औरंगजेब के आदेश पर आरे से जिंदा चीर दिया गया, भाई सतीदास जी को कपास में जिंदा लपेटकर आग लगा दी गई तथा भाई दयाला जी को देग (वलटोही) में पानी डालकर उसमें उबाल दिया गया। गुरु जी को भी करामात दिखाने को कहा गया, परंतु गुरु जी ने इंकार कर दिया। आखिर 1675 ई. में आप जी को चांदनी चौक में शहीद कर दिया गया। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने गुरु जी की शहीदी के बारे में इस तरह लिखा है, 


‘‘ठीकर फोर दिलीस सिर, प्रभु पुर किआ पयान॥
तेग बहादर सी क्रिया करी न किनहूं आन॥
तेग बहादर के चलत भयो जगत को सोक॥
है है है सब जग भयो जय जय जय सुरलोक॥’’


आपने हिंद धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए, इसलिए आप जी को ‘हिंद की चादर’ कहा जाता है। 

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