Edited By Niyati Bhandari,Updated: 23 Jul, 2021 08:49 AM
आध्यात्मिक जगत में गुरु पूर्णिमा का विशिष्ट स्थान है। यह पर्व आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को बड़े उल्लास एवं उत्साह से मनाया जाता है। इसी दिन गुरुओं के गुरु संत शिरोमणि महर्षि वेद व्यास जी
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Guru Purnima: आध्यात्मिक जगत में गुरु पूर्णिमा का विशिष्ट स्थान है। यह पर्व आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को बड़े उल्लास एवं उत्साह से मनाया जाता है। इसी दिन गुरुओं के गुरु संत शिरोमणि महर्षि वेद व्यास जी का अवतरण हुआ था। इसी कारण गुरु पूर्णिमा को ‘व्यास पूर्णिमा’ भी कहा जाता है। जिस आसन पर बैठकर संत, महापुरुष अथवा आचार्य अपने शिष्यों को आशीष वचन देते हैं उस आसन को व्यास गद्दी कहा जाता है। गुरुओं की पूजा के कारण ही इस पर्व को गुरु पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। गुरु पूजन की यह प्रथा अनादि काल से चली आ रही है।
यूं कह सकते हैं कि जबसे गुरु-शिष्य परम्परा शुरू हुई है तब से ऐसी धारणा है कि यह दिन शिष्य को पूर्णता की ओर ले जाता है। इस दिन शिष्य गुरु के चरणों में पहुंच कर अपनी प्रेम भक्ति, श्रद्धा का उद्गार गुरु चरणों में अर्पित करता है। प्राचीन ग्रंथों जैसे वेद, उपनिषद् आदि का यदि अध्ययन करें तो हमारी आस्था, श्रद्धा, विश्वास और भी सुदृढ़ हो जाता है। ये ग्रंथ हमें बताते हैं कि शिष्य की अज्ञानता को दूर कर गुरु उसकी आत्मा को परमात्मा से मिलाने के लिए एक सेतु का काम करते हैं। इन ग्रंथों में गुरु की उपमा परमपिता परमेश्वर से की गई है अर्थात जैसी श्रद्धा हमारी भगवान के प्रति रहती है वैसी ही श्रद्धा सतगुरु के प्रति रखनी चाहिए।
संत कबीर ने तो यहां तक कहा है-
‘गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय। बलिहारी गुरु आपने, जिन गोविंद दियो मिलाय।।’
कबीर जी कहते हैं कि गुरु और गोविंद दोनों यदि आ जाएं तो वे पहले गुरु को नमन करेंगे क्योंकि गोविंद से तो गुरु महाराज ने ही मिलाया है। वास्तव में गुरु पूर्णिमा गुरु शिष्य के प्रेम का सेतु है जिसे पूरे विश्व में सनातन धर्म को मानने वाले पूरी श्रद्धा, भक्ति, प्रेम और चाव से मनाते हैं।