Edited By ,Updated: 08 May, 2017 02:47 PM
हमारे शास्त्र एवं पुराण प्रभु की महिमा से भरे पड़े हैं जिनमें लिखा है कि भगवान सदा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा करने और हिरण्यकशिपु के आतंक को समाप्त करने
हमारे शास्त्र एवं पुराण प्रभु की महिमा से भरे पड़े हैं जिनमें लिखा है कि भगवान सदा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा करने और हिरण्यकशिपु के आतंक को समाप्त करने के लिए भगवान विष्णु ने श्री नृसिंह अवतार लिया। जिस दिन भगवान धरती पर अवतरित हुए उस दिन वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी थी इसी कारण यह दिन नृसिंह जयंती के रूप में मनाया जाता है। बहुत से भक्त इस दिन उपवास भी करते हैं। शास्त्रों के अनुसार श्री नृसिंह को भगवान विष्णु जी का अवतार माना जाता है। इनका आधा शरीर नर तथा आधा शरीर सिंह के समान है तथा व्रत में भगवान विष्णु को नृसिंह अवतार के रूप में ही पूजा जाता है।
इस दिन प्रात: सूर्योदय से पूर्व उठ कर स्नानादि क्रियाओं से निपटकर भगवान विष्णु जी के नृसिंह रूप की विधिवत धूप, दीप, नेवैद्य, पुष्प एवं फलों से पूजा एवं अर्चना करते हुए विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें तथा सूर्य देवता को तांबे के पात्र में जल भर कर व्रत रखने के लिए इस मंत्र का उच्चारण करते हुए निवेदन करें :
‘‘ओम विष्णु: विष्णु: विष्णु:- नृसिंह देवदेवेश तव जन्मदिने शुभे उपवास करिष्यामी सर्वभोगवर्जित:’’।
इस व्रत में जल भी ग्रहण नहीं करना चाहिए और सायंकाल को भगवान नृसिंह जी का दूध, दही, गंगाजल, चीनी के साथ ही गाय के मक्खन अथवा घी आदि से अभिषेक करने के पश्चात चरणामृत लेकर फलाहार करना चाहिए। निर्णयसिंधु के अनुसार इस व्रत की तिथि सूर्यास्तकाल व्यापिनी ही लेनी चाहिए क्योंकि भगवान का अवतार संध्या काल में हुआ था।
व्रत का पुण्यफल- व्रत के प्रभाव से जहां जीव की सभी कामनाओं की पूर्ति हो जाती है वहीं मनुष्य का तेज और शक्तिबल भी बढ़ता है तथा जीव को प्रभु की भक्ति भी सहज ही प्राप्त हो जाती है। शत्रुओं पर विजय पाने के लिए यह व्रत करना अति उत्तम फलदायक है। इस दिन जप एवं तप करने से जीव को विशेष फल प्राप्त होता है।
वीना जोशी
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