Edited By ,Updated: 23 Jan, 2017 09:17 AM
इस संसार में आप अकेले ही निराशा से पीड़ित नहीं हैं, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति स्वास्थ्य सम्बन्धी, आर्थिक स्थिति, आपसी सम्बन्ध या समाज में अपनी मान-प्रतिष्ठा
इस संसार में आप अकेले ही निराशा से पीड़ित नहीं हैं, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति स्वास्थ्य सम्बन्धी, आर्थिक स्थिति, आपसी सम्बन्ध या समाज में अपनी मान-प्रतिष्ठा को लेकर चिंतित या निराश है। इन समस्याओं की जड़ है स्वयं या दूसरों से की गई अपूर्ण अपेक्षाएं। आत्मा की मूल प्रकृति ही असंतुष्ट रहना है। इच्छाओं की पूर्ति तो जन्म-जन्मान्तर तक असम्भव है। योग इसका कारण मनुष्य की अज्ञानता को मानता है। इस संसार में तो सब कुछ नश्वर है, क्षणभंगुर है और इस सत्य का ज्ञान और शांति का अनुभव केवल गुरु चरणों में ही प्राप्त हो सकता है।
गुरु के सानिध्य में इसका अभ्यास करने से मन शांत होकर परम सुख का अनुभव करता है और निराशा दूर होती है। कमर सीधी रखते हुए एक आरामदायक स्थिति में बैठ जाएं और अपनी आँखें बंद करें। गुरु स्मरण करते हुए अपना सारा ध्यान छाती के मध्य भाग में ले जाएं। वहां पर एक हल्के गुलाबी रंग के कमल पुष्प का आभास करें और उस पुष्प से निकलते हुए हल्के गुलाबी रंग के प्रकाश से अपने सम्पूर्ण शरीर को भरता हुआ देखें। धीरे-धीरे इस प्रकाश को अपने तत्कालिक परिवेश में फैलता हुआ देखें और फिर पूरी पृथ्वी और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को इस प्रकाश से भरा हुआ महसूस करें। इस विशाल गुलाबी वातावरण में अपने ह्रदय-कमल से निकलती हुई रोशनी को अपने गुरु के ह्रदय कमल में विलय करें। उनका हाथ पकड़ते हुए पूर्णतः स्थिर होकर किसी भी प्रकार की हलचल, विचार या ध्वनि को त्याग दें और स्वयं को एक शून्य में छोड़ दें।क्षमतानुसार यह स्थिरता बनाए रखें और सबसे पहले अपनी हथेलियों के मध्य भाग में देखते हुए अपनी आंखें खोलें तत्पश्चात कहीं और देखें।
योगी अश्विनी जी
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