Edited By ,Updated: 02 Jan, 2017 04:49 PM
एक भिक्षुक भिक्षा मांगने जाया करते थे। वह जब भी रास्ते में पड़ने वाले एक घर के सामने से गुजरते तो उन्हें एक औरत रोज ही अपनी बहू से झगड़ती मिलती
एक भिक्षुक भिक्षा मांगने जाया करते थे। वह जब भी रास्ते में पड़ने वाले एक घर के सामने से गुजरते तो उन्हें एक औरत रोज ही अपनी बहू से झगड़ती मिलती। एक दिन भिक्षुक उसी औरत के घर भिक्षा मांगने पहुंच गए और आवाज लगाई ‘‘भिक्षा दे... माते.. भिक्षा दे।’’
घर से वही महिला सास बाहर आई। उसने भिक्षुक के कमंडल में भिक्षा डाल दी और कहा, ‘‘महात्मा जी, कोई उपदेश दीजिए।’’
भिक्षुक बोले, ‘‘बच्ची उपदेश, बच्ची आज नहीं, कल दूंगा।’’
अगले दिन भिक्षुक पुन: उस घर के सामने गए और आवाज दी, ‘‘भिक्षा दे माते।’’
वह महिला घर से बाहर आई और भिक्षुक के कमंडल में काजू, बादाम और पिस्ते की बनी खीर डालने लगी, तभी उसने देखा कि कमंडल में कूड़ा भरा पड़ा है। उसके हाथ भिक्षा देने से रुक गए।
वह बोली, ‘‘महाराज, आपका यह कमंडल तो गंदा है। इसमें तो कूड़ा-कचरा भरा है।’’
भिक्षुक बोले, ‘‘हां, गंदा तो है लेकिन तुम इसमें खीर डाल दो।’’
उसने कहा, ‘‘नहीं महाराज, अगर मैंने इसी गंदे कमंडल में खीर डाल दी तो वह खराब हो जाएगी और फिर वह आपके खाने लायक नहीं रहेगी।’’
भिक्षुक ने उस महिला से पूछा, ‘‘तुम चाहती हो कि जब यह कमंडल साफ हो जाएगा तभी तुम इसमें खीर डालोगी।’’
महिला ने कहा, ‘‘हां महाराज, तभी तो खीर आपके खाने योग्य रहेगी।’’
महाराज ने कहा, ‘‘जिस तरह से मेरे इस गंदे कमंडल में खीर डालने से खीर मेरे खाने योग्य नहीं रहेगी, ठीक उसी तरह से मेरा उपदेश भी तुम्हारे लिए तब तक अनुपयोगी रहेगा जब तक तुम्हारे मन में संसार के प्रति द्वेष भाव और चिन्ताओं का कूड़ा-कचरा और बुरे संस्कारों का गोबर भरा रहेगा।’’