देवी सरस्वती को समर्पित वसंत पंचमी से जुड़ी मान्यताओं पर डालें एक नजर

Edited By ,Updated: 01 Feb, 2017 08:44 AM

vasant panchami is dedicated to goddess saraswati

विश्व भर में भारत एक ऐसा देश है जहां प्रकृति के विस्तृत रंगमंच पर वर्ष में छ: ऋतुएं क्रम से आती हैं और एक अनोखा दृश्य दिखाकर चली जाती हैं। सर्वप्रथम आगमन होता है वसंत ऋतु का, जिसे

विश्व भर में भारत एक ऐसा देश है जहां प्रकृति के विस्तृत रंगमंच पर वर्ष में छ: ऋतुएं क्रम से आती हैं और एक अनोखा दृश्य दिखाकर चली जाती हैं। सर्वप्रथम आगमन होता है वसंत ऋतु का, जिसे पुराणों में कामदेव का पुत्र बताया गया है। रूप-सौंदर्य के देवता कामदेव के घर पुत्रोत्पत्ति का समाचार सुनते ही प्रकृति नृत्यरत हो गई। तरह-तरह के फूल उसके आभूषण, हरियाली उसके वस्त्र, कोयल की कूक सा मीठा स्वर और पूरा शरीर प्रफुल्लता से रोमांचित हो उठा। इस प्रकार रूप-यौवन सम्पन्न प्रकृति इठलाते हुए ऋतुराज वसंत का सज-धज कर स्वागत करती है। वसंत पंचमी यानि शुक्ल पक्ष का पांचवां दिन जो अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार जनवरी-फरवरी तथा हिन्दू तिथि के अनुसार माघ के महीने में आता है। यह तिथि बागीश्वरी व श्रीपंचमी के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस समय में पंचतत्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं यानी वायु, अग्नि, जल, आकाश और धरती अपना मनमोहक रूप धारण करते हैं।


वसंत पंचमी से जुड़ी मान्यताएं
इसी दिन ही विद्या की देवी व ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती का जन्म हुआ था, यही कारण है कि दोनों में घनिष्ठ संबंध है। इसके बारे में यह कथा प्रचलित है कि एक बार सृष्टि के आरंभकाल में जब विष्णु जी की आज्ञा से ब्रह्मा जी ने मनुष्य योनि की रचना की तो वह अपनी सृजना से खुश नहीं थे। उन्होंने विष्णु जी से आज्ञा लेकर अपने कमंडल का जल धरती पर छिड़का तो पृथ्वी में कंपन होने लगा। तब एक अद्भुत शक्ति के रूप में चतुर्भुजी देवी रूप का प्राकट्य हुआ जिसके दो हाथों में वीणा भाव संचार एवं कलात्मकता का, तीसरे हाथ में पुस्तक को ज्ञान का और चौथे हाथ में शोभायमान माला को ईश निष्ठा का प्रतीक माना जाता है। 


देवी सरस्वती को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री कहा जाता है जो विद्या की देवी हैं व माघ पंचमी को इनकी पूजा की परम्परा चली आ रही है। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती की वंदना करते हुए कहा गया है :
प्रणो: देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु:।

अर्थात ये परम चेतना हैं व सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा व मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं।


एक ऐतिहासिक तथ्य के अनुसार पृथ्वीराज चौहान ने युद्ध में सोलह बार मोहम्मद गौरी को पराजित किया और हर बार उदारता दिखाते हुए उसे माफ कर दिया लेकिन सत्रहवीं बार हुए युद्ध में गौरी ने पृथ्वीराज को बंदी बना लिया और अपने साथ अफगानिस्तान ले गया। वहां उसने पृथ्वीराज चौहान की आंखें निकाल दीं लेकिन उसे मारने से पहले वह उसकी शब्द भेदी बाण चलाने की कला के कमाल को देखना चाहता था। ऐसे में पृथ्वीराज के गहरे मित्र और कवि चंदबरदाई ने कविता के माध्यम से एक गुप्त संदेश देते हुए कहा : 
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुलतान है, मत चूको चौहान


पृथ्वी राज ने जब हिसाब लगाकर निशाना साधा तो तीर सीधे गौरी के सीने में जाकर लगा। इसके बाद पृथ्वी राज व चंद बरदाई दोनों ने एक-दूसरे को छुरा मार कर आत्म बलिदान दे दिया। यह महान विभूतियों का स्मृति पर्व भी है। वसंत पंचमी वाले दिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पुरोधा व आजादी की अलख सबसे पहले जगाने वाले सतगुरु राम सिंह जी का जन्मदिन भी मनाया जाता है। इन्होंने गौ-हत्या व अंग्रेजों के विरुद्ध आवाज उठाई थी। इसी दिन हिन्दी के यशस्वी कवि पं. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्मदिन भी होता है एवं निराला जयंती तथा धर्म की वेदी पर कुर्बान होने वाले वीर हकीकत राय का बलिदान दिवस भी मनाया जाता है। इस दिन वसंतोत्सव का आयोजन कर उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है।

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