Edited By ,Updated: 07 Nov, 2016 09:24 AM
वृन्दावन देवी: औरंगजेब के राजत्व काल में जब हिंदू धर्म पर विपत्ति और हिन्दुओं के मंदिरों पर आक्रमण हुआ तब श्रील रूप गोस्वामी जी द्वारा सेवित विग्रह श्रीगोविन्द जी, श्रील मधु पण्डित जी
वृन्दावन देवी: औरंगजेब के राजत्व काल में जब हिंदू धर्म पर विपत्ति और हिन्दुओं के मंदिरों पर आक्रमण हुआ तब श्रील रूप गोस्वामी जी द्वारा सेवित विग्रह श्रीगोविन्द जी, श्रील मधु पण्डित जी के सेवित विग्रह श्रीगोपीनाथ जी और श्रील सनातन गोस्वामी जी के सेवित श्रीमदन मोहन जी के विग्रह सेवकों को सेवा प्रदान करने के लिए पहले भरतपुर राजा के राज्य में आए परंतु बाद में विपत्ति के बहाने से वहां से जयपुर चले गए।
जयपुर महाराज की कन्या के प्रेम के वशीभूत होकर श्रीमदन मोहन जी करोली में चले गए। अभी भी जयपुर में श्रीराधा गोविन्दजी, श्रीराधा गोपीनाथजी एवं करोली में मदनमोहनजी विराजित हैं। श्रीविग्रहों के भरतपुर में आने पर काम्यवन में उनके लिए तीन मन्दिर निर्मित हुए। श्रीगोविन्द देवजी के मन्दिर के एक प्रकोष्ठ में वृन्दादेवी पृथक रूप से विराजित हैं।
वहां के पण्डा लोग कहते हैं कि जब श्रीगोविन्दजी, श्रीगोपीनाथजी, श्रीमदनमोहन जी काम्यवन से जयपुर गए थे, तब वृन्दादेवी ने वहां जाने की इच्छा नहीं की इसलिए काम्यवन मन्दिर में श्रीगोविन्दजी, श्रीगोपीनाथजी, श्रीमदनमोहनजी के प्रतिभु विग्रह हैं, किन्तु वृन्दा देवी जी का मूल विग्रह है।
श्री कामेश्वर शिव: कहा जाता है कि व्रजनाभ जी द्वारा प्रतिष्ठित श्रीकामेश्वर शिव जी के स्थान पर व्यक्ति जो कामना करता है वह पूरी हो जाती है। मंगलाकंक्षी व्यक्ति कामेश्वर शिव जी से राधाकृष्ण जी के पादपद्मों की अहैतुकि भक्तों को छोड़ कर और कुछ भी प्रार्थना नहीं करते।
धर्म कुण्ड: भगवान नारायण धर्म रूप से यहां विराजित हैं। वृजवासी कहते हैं कि युधिष्ठिर महाराज जी के पिता धर्मराज जी ने यहीं पर बक और यक्ष का रूप धारण कर प्रश्न किए थे एवं युधिष्ठिर महाराज जी द्वारा यथोधित उत्तर देने पर उनके भाई जीवित हुए थे।
श्री चैतन्य गौड़िया मठ की ओर से
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
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