अक्षय तृतीया पर वृंदावन के सप्त देवालयों में करें चंदन सेवा, जन्म-जन्म के पापों से मिलेगी मुक्ति

Edited By ,Updated: 25 Apr, 2017 03:10 PM

vrindavan sapt devalaya

वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को ब्रज के अधिकांश मंदिरों में चंदन यात्रा अौर वृंदावन के प्राचीन सप्त देवालयों में फूल बंगला बनना आरंभ हो जाता है। ब्रज के बल्देव के

वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को ब्रज के अधिकांश मंदिरों में चंदन यात्रा अौर वृंदावन के प्राचीन सप्त देवालयों में फूल बंगला बनना आरंभ हो जाता है। ब्रज के बल्देव के दाऊजी मंदिर में अक्षय तृतीया 28 अप्रैल को मनाया जा रहा है। वहीं अन्य मंदिरों में यह पर्व 29 अप्रैल को मनाया जाएगा। ब्रज के मंदिरों में इस दिन से ठाकुर जी को सतु, खरबूजे का पना, ककड़ी, अमरस आदि का भोग लगाना अौर पंखा सेवा शुरु हो जाती है। ब्रज के अधिकांश मंदिरों में अक्षय तृतीया के 2-3 सप्ताह पूर्व चंदन का लेप तैयार होना शुरू हो जाता है। उसके बाद ठाकुर जी के सर्वांग में चंदन का लेप लगाया जाता है। मथुरा के केशवदेव मंदिर मल्लपुरा में चंदन सेवा के साथ वर्ष में एक बार अक्षय तृतीया पर ठाकुर जी के 24 अवतारों के दर्शन होते हैं। वहीं वृदांवन में बांकेबिहारी मंदिर में इसी दिन वर्ष में एक बार ठाकुर जी के चरण दर्शन होते हैं। 

बांके बिहारी मंदिर में सवा सौ गोस्वामी परिवारों में से प्रत्येक परिवार से एक किलो चंदन का गोला ठाकुर जी को समर्पित किया जाता है। बांकेबिहारी जी को रजत पायल धारण कराकर उनके श्री चरणों में चंदन का गोला रखा जाता है। सप्त देवालयों में राधारमण मंदिर में राजभोग आरती बत्ती की न होकर फूलों से होती है। इस दिन चंदन की अधिक आवश्यकता होती है इसलिए काफी दिन पहले चंदन की घिसाई शुरू हो जाती है। 

ठाकुर जी को गर्मी से बचाने के लिए अक्षय तृतीया के दिन चंदन में कपूर, केसर मिलाकर ठाकुर जी का श्रृंगार किया जाता है। अक्षय तृतीया से शरदपूर्णिमा तक ठाकुर जी जगमोहन में विराजते हैं अौर पद गायन होता है। कहा जाता है कि मंदिर में चंदन सेवा मात्र से जन्म-जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं। लाखों भक्त गिरी गोवर्धन की सप्तकोसी परिक्रमा करते हैं।


 

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