बुधवार: अनेक बार परीक्षित किए हुए ये टोटके, नहीं सताएगा कालसर्प दोष का साया

Edited By Punjab Kesari,Updated: 06 Mar, 2018 09:39 AM

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जिस जातक की कुंडली में कालसर्प दोष पाया जाता है, उसका जीवन या तो रंक जैसे गुजरता है या फिर राजा जैसा। राहू का अधिदेवता ''काल'' है तथा केतु का अधिदेवता ''सर्प'' है। इन दोनों ग्रहों के बीच कुंडली में एक तरफ सभी ग्रह हों तो ''कालसर्प'' दोष कहते हैं।

जिस जातक की कुंडली में कालसर्प दोष पाया जाता है, उसका जीवन या तो रंक जैसे गुजरता है या फिर राजा जैसा। राहू का अधिदेवता 'काल' है तथा केतु का अधिदेवता 'सर्प' है। इन दोनों ग्रहों के बीच कुंडली में एक तरफ सभी ग्रह हों तो 'कालसर्प' दोष कहते हैं। राहू-केतु हमेशा वक्री चलते हैं तथा सूर्य चंद्रमार्गी। कुंडली में 12 तरह के कालसर्प दोष होने के साथ ही राहू की दशा, अंतरदशा में अस्त-नीच या शत्रु राशि में बैठे ग्रह मारकेश या वे ग्रह जो वक्री हों, उनके चलते जातक को कष्टों का सामना करना पड़ता है। इस योग के चलते जातक असाधारण तरक्की भी करता है, लेकिन उसका पतन भी एकाएक ही होता है। कुछ सरल उपायों से अपने दुख तथा समस्याओं में कमी कर सकते हैं-


कालसर्प योग की विशिष्ट अंगूठी प्राण-प्रतिष्ठित करके, बुधवार के दिन सूर्योदय के समय कनिष्ठिका उंगली में धारण करनी चाहिए। जिस दिन धारण करें, उस दिन राहू की सामग्री का आंशिक दान करना चाहिए। इससे भी चमत्कारी ढंग से लाभ होता है। यह टोटका अनेक बार परीक्षित किया हुआ है।


प्रत्येक बुधवार को काले वस्त्र मेें उड़द या मूंग एक मुट्ठी डालकर राहू का मंत्र जाप कर किसी भिखमंगे को दे दें। यदि दान लेने वाला कोई नहीं मिले तो बहते पानी में उस अन्न को छोड़ देना चाहिए। इस प्रकार 72 बुधवार तक करते रहने से अवश्य लाभ होता है।


पलाश के पुष्प गौमूत्र में कूटकर छांव में सुखाएं और उसका चूर्ण बनाकर नित्य स्नान की बाल्टी में यह चूर्ण डालें। इस प्रकार 72 बुधवार (डेढ़ वर्ष) तक स्नान करने से कालसर्प योग नष्ट हो जाता है। कुछ विद्वानों का मत है कि यदि 72000 राहू के जाप ऊँ रां राहवे नम:’ से किए जाएं तो भी कालसर्प योग शांत हो जाता है।


शिव उपासना एवं निरंतर रुद्रसूक्त से अभिमंत्रित जल से स्नान करने पर यह योग शिथिल हो जाता है। संकल्पपूर्वक लघुरुद्र कराएं।


यदि किसी स्त्री की कुंडली इस योग से दूषित है तथा उसको संतति का अभाव है, विधि नहीं करा सकती हो तो किसी अश्वत्थ (बट) के वृक्ष से नित्य 108 प्रदक्षिणा (घेरे) लगाने चाहिए। तीन सौ दिन में जब 28000 प्रदक्षिणा पूरी होगी तो दोष दूर होकर, स्वत:ही संतति की प्राप्ति होगी। 

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