अत्यंत आकर्षक एवं विस्मयकारी है पश्चिमाभिमुख देव सूर्य मंदिर

Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Mar, 2018 03:25 PM

western temple of surya dev in bihar is wonderful

औरंगाबाद: देश में मंदिर तो कई हैं लेकिन प्रसिद्ध मंदिर की सूची में कुछ गिने-चुने मंगिरों के नाम ही आते हैं। उन्हीं में से एक बिहार का सबर्य मंदिर है जो औरंगाबाद जिले में स्थित है। यह ऐतिहासिक और पौराणिक स्थल देव में मौजूद त्रेतायुगीन पश्चिमाभिमुख...

औरंगाबाद: देश में मंदिर तो कई हैं लेकिन प्रसिद्ध मंदिर की सूची में कुछ गिने-चुने मंगिरों के नाम ही आते हैं। उन्हीं में से एक बिहार का सबर्य मंदिर है जो औरंगाबाद जिले में स्थित है। यह ऐतिहासिक और पौराणिक स्थल देव में मौजूद त्रेतायुगीन पश्चिमाभिमुख सूर्य मंदिर अपनी कलात्मक भव्यता के लिए सर्वविदित और प्रख्यात होने के साथ ही सदियों से देशी-विदेशी पर्यटकों, श्रद्धालुओं और छठव्रतियों की अटूट आस्था का केंद्र बना हुआ है। मंदिर की अभूतपूर्व स्थापत्य कला, शिल्प, कलात्मक भव्यता और धार्मिक महत्ता के कारण ही जनमानस में यह किंवदति प्रसिद्ध है कि इसका निर्माण देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने स्वयं अपने हाथों से किया है। देव स्थित भगवान भास्कर का विशाल मंदिर अपने अप्रतिम सौंदर्य और शिल्प के कारण सदियों श्रद्धालुओं, वैज्ञानिकों, मूर्तिचोरों, तस्करों एवं आमजनों के लिए आकर्षण का केंद्र है। मंदिर के निर्माणकाल के संबंध में उसके बाहर ब्रह्म लिपि में लिखित और संस्कृत में अनुवादित एक श्लोक जड़ा है, जिसके अनुसार 12 लाख 16 हजार वर्ष त्रेता युग के बीत जाने के बाद इलापुत्र पुरूरवा ऐल ने देव सूर्य मंदिर का निर्माण आरंभ करवाया। शिलालेख से यह भी पता चलता है कि साल 2016 में इस पौराणिक मंदिर के निर्माण काल का एक लाख पचास हजार सोलह वर्ष पूरा हो गया है।  देव मंदिर में सात रथों से सूर्य की उत्कीर्ण प्रस्तर मूर्तियां अपने तीनों रूपों-उदयाचल-प्रात: सूर्य, मध्याचल- मध्य सूर्य और अस्ताचल-अस्त सूर्य के रूप में विद्यमान है। पूरे देश में देव का मंदिर ही एकमात्र ऐसा सूर्य मंदिर है जो पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है।  करीब एक सौ फीट ऊंचा यह सूर्य मंदिर स्थापत्य और वास्तुकला का अदभुत उदाहरण है। बिना सीमेंट अथवा चूना-गारा का प्रयोग किए आयताकार, वर्गाकार, अद्र्धवृत्ताकार, गोलाकार, त्रिभुजाकार आदि कई रूपों और आकारों में काटे गएे पत्थरों को जोड़कर बनाया गया यह मंदिर अत्यंत आकर्षक एवं विस्मयकारी है।


जनश्रुतियों के आधार पर इस मंदिर के निर्माण के संबंध में कई किंवदतियां प्रसिद्ध है जिससे मंदिर के अति प्राचीन होने का स्पष्ट पता तो चलता है लेकिन इसके निर्माण के संबंध में अभी भी भ्रामक स्थिति बनी हुई है। निर्माण के मुद्दे को लेकर इतिहासकारों और पुरातत्व विशेषज्ञों के बीच चली बहस से भी इस संबंध में ठोस परिणाम प्राप्त नहीं हो सका है।  जनश्रुति के अनुसार ऐल एक राजा थे, जो किसी ऋषि के श्राप वश श्वेत कुष्ठ से पीड़ित थे। वे एक बार शिकार करने देव के वन प्रांत में पहुंचने के बाद राह भटक गये। राह भटकते भूखे-प्यासे राजा को एक छोटा सा सरोवर दिखायी पड़ा जिसके किनारे वे पानी पीने गये और अंजुरी में भरकर पानी पिया। पानी पीने के क्रम में वे यह देखकर घोर आश्चर्य में पड़ गये कि उनके शरीर के जिन जगहों पर पानी का स्पर्श हुआ, उन जगहों के श्वेत कुष्ठ के दाग जाते रहे। इससे अति प्रसन्न और आश्चर्यचकित राजा अपने वस्त्रों की परवाह नहीं करते हुए सरोवर के गंदे पानी में लेट गये और इससे उनका श्वेत कुष्ठ पूरी तरह जाता रहा।  राजा ने अपने शरीर में आश्चर्यजनक परिवर्तन देख प्रसन्नचित हो इसी वन प्रांतर में रात्रि विश्राम करने का निर्णय लिया और रात्रि में राजा को सपना आया कि उसी सरोवर में भगवान भास्कर की प्रतिमा दबी पड़ी है। प्रतिमा को निकालकर वहीं मंदिर बनवाने और उसमे प्रतिष्ठित करने का निर्देश उन्हें सपने में प्राप्त हुआ।  कहा जाता है कि राजा ऐल ने इसी निर्देश के मुताबिक सरोवर से दबी मूर्ति को निकालकर मंदिर में स्थापित कराने का काम किया और सूर्य कुण्ड का निर्माण कराया लेकिन मंदिर यथावत रहने के बावजूद उस मूर्ति का आज तक पता नहीं है। जो अभी वर्तमान मूर्ति है वह प्राचीन अवश्य है, लेकिन ऐसा लगता है मानो बाद में स्थापित किया गया हो। मंदिर परिसर में जो मूर्तियां हैं, वे खंडित तथा जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं।


मंदिर निर्माण के संबंध में एक कहानी यह भी प्रचलित है कि इसका निर्माण एक ही रात में देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने अपने हाथों किया था और कहा जाता है कि इतना सुंदर मंदिर कोई साधारण शिल्पी बना ही नहीं सकता। इसके काले पत्थरों की नक्काशी अप्रतिम है और देश में जहां भी सूर्य मंदिर है, उनका मुंह पूरब की ओर है, लेकिन यही एक मंदिर है जो सूर्य मंदिर होते हुए भी ऊषाकालीन सूर्य की रश्मियों का अभिषेक नहीं कर पाता वरन अस्ताचलगामी सूर्य की किरणें ही मंदिर का अभिषेक करती हैं।  जनश्रुति है कि एक बार बर्बर लुटेरा काला पहाड़ मूत्र्तियों एवं मंदिरों को तोड़ता हुआ यहां पहुंचा तो मंदिर के पुजारियों ने उससे काफी विनती की कि इस मंदिर को कृपया न तोड़ें क्योंकि यहां के भगवान का बहुत बड़ा महात्य है। इस पर वह हंसा और बोला यदि सचमुच में तुहारे भगवान में कोई शक्ति है तो मैं रात भर का समय देता हूं तथा यदि इसका मुंह पूरब से पश्चिम हो जाये तो मैं इसे नहीं तोडूंगा। पुजारियों ने सिर झुकाकर इसे स्वीकार कर लिया और वे रातभर भगवान से प्रार्थना करते रहे। सबेरे उठते ही हर किसी ने देखा कि सचमुच मंदिर का मुंह पूरब से पश्चिम की ओर हो गया था और तब से इस मंदिर का मुंह पश्चिम की ओर ही है।  इस मंदिर के निर्माण से संबंध विवाद चाहे जो भी हो, कोई साफ अवधारणा भले ही नहीं बन पायी हो लेकिन इस मंदिर की महिमा को लेकर लोगों के मन में अटूट श्रद्धा एवं आस्था है। यही कारण है कि हर साल चैत्र और कार्तिक के छठ मेले में लाखों लोग विभिन्न स्थानों से यहां आकर भगवान भास्कर की आराधना करते हैं। लोगों का विश्वास है कि कार्तिक एवं चैती छठ व्रत के मौके पर सूर्य देव की साक्षात उपस्थिति की रोमांचक अनुभूति होती है।

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!