Edited By ,Updated: 15 Apr, 2017 12:55 PM
एक परिवार का मुखिया, पत्नी और उसकी पुत्री एक माह की तीर्थ यात्रा कर पुन: घर लौटे और दरवाजे का ताला खोलने को ज्यों ही आगे बढ़े उन्हें दरवाजे पर तीन मूर्तियां खड़ी दिखाई दीं।
एक परिवार का मुखिया, पत्नी और उसकी पुत्री एक माह की तीर्थ यात्रा कर पुन: घर लौटे और दरवाजे का ताला खोलने को ज्यों ही आगे बढ़े उन्हें दरवाजे पर तीन मूर्तियां खड़ी दिखाई दीं। वे चकित हुए कि ये मूर्तियां कहां से आ गईं। उनके सामने उलझन उस समय और बढ़ गई, जब ताले में चाबी लगाने के बाद भी वह नहीं खुला। तीनों परेशान थे और चर्चा करने लगे कि यात्रा पर प्रस्थान करते समय तो ये मूर्तियां दरवाजे या आसपास कहीं भी नहीं थीं, अब कहां से आ गईं। तभी तीनों मूर्तियां एक साथ बोल पड़ीं, ‘‘देखो, दरवाजा तो तभी खुलेगा जब तुम अपने साथ हम में से किसी एक को घर में प्रवेश दोगे।’’
मुखिया ने उन तीनों से परिचय पूछा, तब पहली मूर्त ने कहा, ‘‘मैं सफलता हूं।’’
दूसरी बोली, ‘‘मैं प्रसन्नता हूं’’ और तीसरी मूर्त ने कहा कि, ‘‘मैं प्रेम हूं।’’
अब परिवार के तीनों ही जन विचार-विमर्श करने लगे कि मूर्तियों में से गृह प्रवेश के लिए किसे चुना जाए? मुखिया बोला, ‘‘मैं तो सफलता के साथ प्रवेश करना चाहूंगा क्योंकि जीवन में सफलता के साथ प्रसन्नता स्वत: आ जाती है।’’
पत्नी इससे असहमत थी। उसने कहा, ‘‘यह जरूरी नहीं कि सफलता के साथ प्रसन्नता आ ही जाए। कई बार सफलता परेशानियों का कारण भी बन जाती है। इसलिए मैं तो प्रसन्नता के साथ भीतर जाने की इच्छा रखती हूं क्योंकि प्रसन्नता से वातावरण सकारात्मक बना रहता है।’’
फिर, दोनों ने अपनी पुत्री से उसकी पसंद पूछी तो वह बोली, ‘‘मैं तो घर में प्रेम की मूर्त ले जाना चाहूंगी। क्योंकि जहां प्रेम होगा, वहां प्रसन्नता और सफलता स्वयंमेव आ जाएंगी।’’
तीनों मूर्तियों ने भी सिर हिलाकर उसकी बात का समर्थन किया।