जब स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी की इच्छा पूरी न करने पर अर्जुन बन गया नपुंसक

Edited By ,Updated: 12 Apr, 2017 11:58 AM

when arjuna became impotent

एक बार इन्द्रदेव ने अर्जुन को स्वर्ग में आने के लिए निमंत्रण दिया और अर्जुन ने वह स्वीकार कर लिया। इन्द्रदेव ने अर्जुन का अपने पुत्र के समान अत्यंत सम्मान व खूब प्रेम से सत्कार किया।

एक बार इन्द्रदेव ने अर्जुन को स्वर्ग में आने के लिए निमंत्रण दिया और अर्जुन ने वह स्वीकार कर लिया। इन्द्रदेव ने अर्जुन का अपने पुत्र के समान अत्यंत सम्मान व खूब प्रेम से सत्कार किया। अर्जुन को आनंद हो ऐसी सब चीजें वहां उपस्थित रखी। उसे रणसंग्राम की समस्त विद्या सिखाकर अत्यधिक कुशल बनाया। थोड़े समय बाद परीक्षा लेने के लिए अथवा उसे प्रसन्न रखने के लिए राजदरबार में स्वर्ग की अप्सराओं को बुलाया गया। इन्द्रदेव ने सोचा कि अर्जुन उर्वशी को देखकर मस्त हो जाएगा और उसकी मांग करेगा परंतु अर्जुन पर उसका कोई प्रभाव न हुआ। इसके विपरीत उर्वशी अर्जुन की शक्ति, गुणों व सुन्दरता पर मोहित हो गई। इन्द्रदेव की अनुमति से उर्वशी रात्रि में अर्जुन के महल में गई एवं अपने दिल की बात कहने लगी, "हे अर्जुन ! मैं आपको चाहती हूं। आपके सिवा अन्य किसी पुरुष को मैं नहीं चाहती। मेरी अभिलाषा पूर्ण करो। मेरा यौवन आपको पाने के लिए तड़प रहा है।"


अर्जुन ने उर्वशी से कहा, "माता ! पुत्र के समक्ष ऐसी बातें करना योग्य नहीं है। आपको मुझसे ऐसी आशा रखना व्यर्थ है।"


तब उर्वशी अनेक प्रकार के हाव-भाव करके अर्जुन को अपने प्रेम में फंसाने की कोशिश करने लगी उर्वशी अनेक दलीलें देती है परंतु अर्जुन ने अपने दृढ़ इन्द्रिय-संयम का परिचय देते हुए कहाः


गच्छ मूर्ध्ना प्रपन्नोऽस्मि पादौ ते वरवर्णिनि।
त्वं हि मे मातृवत् पूज्या रक्ष्योऽहं पुत्रवत् त्वया।।


अर्थात " हे वरवर्णिनी ! मैं तुम्हारे चरणों में शीश झुकाकर तुम्हारी शरण में आया हूं। तुम वापस चली जाओ। मेरे लिए तुम माता के समान पूजनीय हो और मुझे पुत्र के समान मानकर तुम्हें मेरी रक्षा करनी चाहिए।"


अपनी इच्छा पूर्ण न होने से उर्वशी ने क्रोधित होकर अर्जुन को शाप दिया, " जाओ, तुम एक साल के लिए नपुंसक बन जाओगे।"
 

अर्जुन ने अभिशप्त होना मंजूर किया परंतु पाप में डूबे नहीं।

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