सप्ताक्षर की महिमा से, जानें क्यों कहा जाता है 7 अंक को लकी

Edited By ,Updated: 15 Feb, 2017 08:53 AM

why 7 number is lucky

इस आप-बीती का श्रीगणेश मुम्बई से हुआ जो संक्षेप में इस प्रकार है- मैं टी.वी. देख रहा था कि मैंने एक विज्ञापन देखा जिसका संदेश था कि

इस आप-बीती का श्रीगणेश मुम्बई से हुआ जो संक्षेप में इस प्रकार है- मैं टी.वी. देख रहा था कि मैंने एक विज्ञापन देखा जिसका संदेश था कि एक महान संत श्रीमद्भागवत पर सात दिन तक प्रवचन करेंगे। ईश्वर कृपा से मन में विचार आया कि चलो दोपहर का भोजन जल्दी कर लेंगे और विश्राम की जगह श्रीमद्भागवत की कथा ही सुनी जाए। इस विचार को लेकर मैंने वह कथा टी.वी. पर सुनी। श्रीमद्भागवत महापुराण का वह श्लोक इस प्रकार है-
प्रणतदेहिना पापकर्शनं, तृण्चरानुगम श्रीनिकेतनम्।
फणिफणाॢपतं ते पदाम्बुजं, कृणु कुचेषु न: कृन्धि द्वच्छयम्।। (10/3/17)


छठे और सातवें दिन उन सबके हाव-भाव से ऐसा प्रतीत होता था कि अभी उनकी श्लोक नंबर 7 की व्याख्या से पूरी संतुष्टि नहीं हुई और जो उन्होंने अभी तक कहा है वह उसे उससे अधिक कहना चाहते हैं। मैंने अपने जीवनकाल में पहली बार सात दिन अढ़ाई घंटे रोज बैठकर श्रीमद्भागवत की कथा सुनी। बहुत ही आनंद आया।


मगर मन में एक तीव्र जिज्ञासा हुई कि श्रीमद्भागवत महापुराण में 18 हजार श्लोक हैं और स्कंद 10 अध्याय 31 में 16 श्लोक हैं परन्तु इन महापुरुष ने 7वें श्लोक को ही क्यों चुना? इसका उत्तर तो स्वयं वही संत दे सकते हैं परन्तु मैंने इसको बहुत विचारा, खोजा तो पाया कि नंबर 7 का अक्षर बहुत ही विशाल अक्षर है। इस अक्षर की विशालता के कुछ उदाहरण निम्र हैं-


प्रधान देवता जिनको निमित्त बनाकर वेदों की ऋचाओं के द्वारा भगवान की स्तुति गाई गई है वे सात हैं- इंद्र, सूर्य, चंद्र, अग्रि, वायु, वरुण और पृथ्वी।


ब्रह्मांड में सात तल हैं- पाताल, रसातल, तलातल, महातल, सुतल, अतल और वितल। 


शरीर में भी सात तल हैं- पैरों का मूल (तलवा) पाताल, पैरों का ऊपरी भाग-रसातल दोनों गुल्फ-तलातल, दोनों पिंडलियां-महातल, दोनों घुटने-सुतल, दोनों जांघें-अतल, कटि भाग-वितल।


ब्रह्मांड में सात लोक हैं- भूलोक, भुव: लोक, स्व लोक, महलोक, जनलोक, तपलोक और सत्यलोक। 


शरीर में भी सात लोक हैं नाभि-भूलोक, उदर-भुव लोक, वक्षस्थल-स्वलोक, गला-महलोक, मुख्य-जनलोक, दोनों नेत्र-तपलोक और मस्तक-सत्यलोक।


ब्रह्मांड में सात पर्वत हैं- मेरु पर्वत, मंदराचल पर्व, कैलाश पर्वत, हिमालय पर्वत, निषध पर्वत, गंदमादन पर्वत और रमन पर्वत।


शरीर में भी सात पर्वत हैं- हृदय कमल में, मेरू पर्वत, नीचे के कोने में मंदराचल पर्व, दाहिने कोने में कैलाश पर्वत, बाएं कोने में हिमालय पर्वत, ऊपर की लकीर में-निषध पर्वत, दाहिनी रेखा में गंदमादन पर्वत और बाएं रेखा में रमन पर्वत। 


ब्रह्मांड में सात द्वीप हैं- जम्बू द्वीप, साक द्वीप, कुश द्वीप, क्रोंच द्वीप, शाल्मली द्वीप, प्लक्ष द्वीप और पुष्कर।


शरीर में भी सात द्वीप हैं- हड्डी स्थान में जम्बू द्वीप, मज्जा में शाप द्वीप, मांस में कुश द्वीप, शिराओं में क्रोंच द्वीप, त्वचा में शाल्मली द्वीप, रोमों में प्लक्ष द्वीप और नख में पुष्कर द्वीप।


ब्रह्मांड में सात सागर हैं- खारा सागर, क्षीर सागर, मदिरा सागर, घृत सागर, रस सागर, दही सागर और सुस्वादु सागर।


शरीर में भी सात सागर हैं- मूत्र में खारा सागर, दूध में क्षीर सागर, कफ में मदिरा सागर, मुज्जा में घृत सागर, रस में रस सागर, रक्त में दही सागर और कंठ के अंतर्गत लिम्बिनी में सुस्वादु सागर।


ब्रह्मांड के आवरण सात हैं- पृथ्वी, जल, आकाश, तेज (अग्रि), वायु, अहंकार और मन। शरीर में भी सात धातु हैं- हड्डी, मज्जा, मांस, रुधिर (रक्त), त्वचा मेद और चर्म।
सूर्य भगवान जब प्रथम बार रथ पर सवार हुए तो वह तिथि सात माघ थी।


सूर्य भगवान के रथ के सात अश्व (घोड़े) हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं- गायत्री, त्रिष्टुप, जगती, अनुष्टु, पंक्ति, बृहती और उष्णिक।


जब सूर्य भगवान आकाश में भ्रमण करते हैं तो वे सात होते हैं, जो इस प्रकार हैं- आदित्य, ऋषि, नाग, अप्सरा, गंधर्व, यज्ञ और राक्षस।


ऋषि सात हैं जिनको सप्त ऋषि कहते हैं- मरीचि, अंगिरा, भृगु, पुलह, अत्रि, पुलस्त्य और क्रतु।


प्रत्येक ऋषि में सात गुण होते हैं- दीर्घायु, मंत्र कर्ता, ऐश्वर्यवान, दिव्य दृष्टियुक्त, गुण, विद्या और आयु में वृद्ध धर्म का प्रत्यक्ष कराने वाला।


वार सात होते हैं- सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार, शनिवार और रविवार। 


स्वर सात होते हैं- सा, रे, गा, म प, ध नि। 


इंद्र धनुष में सात रंग होते हैं- लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, बैंगनी, नीलाम्बर।


श्रीमद्भागवतगीता में सात सौ श्लोक हैं।

गीता के विभूतियोग अध्याय में 7 स्त्रियों का वर्णन है- र्कीत, मेधा, धृति, इन तीनों का विवाह धर्म से हुआ। स्मृति (अंगिरा ऋषि की पत्नी), क्षमा (महर्षि पुलस्त्य ऋषि की पत्नी), श्री (महर्षि भृगु की कन्या-भगवान विष्णु की पत्नी) और वाक्।


भगवान श्रीकृष्ण ने विभूतियोग अध्याय में सात भाव (मुझसे होते हैं) बतलाए हैं- अहिंसा, समता, संतोष, तप, दान, र्कीत और अपर्कीत।

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