जानिए, पूजा के अंत में ही क्यों किया जाता है हवन

Edited By Punjab Kesari,Updated: 05 Mar, 2018 02:39 PM

why yagya is done at the end of the worship

अक्सर हम लोग देखते हैं कि घर में चाहे छोटी पूजा हो या कोई बड़ी, प्रत्येक के उपरांत हवन करना अवश्यक माना जाता है। लेकिन एेसा क्यों किया जाता है। इसके बारे में किसी को ज्ञान नहीं है। तो आईए आज हम आपको इसके पीछे का असल कारण व मान्यता बताते हैं कि आखिर...

अक्सर हम लोग देखते हैं कि घर में चाहे छोटी पूजा हो या कोई बड़ी, प्रत्येक के उपरांत हवन करना अवश्यक माना जाता है। लेकिन एेसा क्यों किया जाता है। इसके बारे में किसी को ज्ञान नहीं है। तो आईए आज हम आपको इसके पीछे का असल कारण व मान्यता बताते हैं कि आखिर क्यों किसी भी प्रकाराकी पूजा करने के बाद हवन या यज्ञ क्यों किया जाता है।


सृष्टि के समस्त तत्व पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु व आकाश के विभिन्न संयोजनों से बने हैं। क्योंकि मनुष्य भी इसी जगत का ही एक अंश है इसलिए मानव भी इन्हीं पांच तत्त्वों से बना है। इन तत्त्वों में से अग्नि विशेष है। जहां एक ओर अन्य सभी तत्त्व प्रदूषित हो सकते हैं, वहीं अग्नि को दूषित नहीं किया जा सकता। हमारे ऋषि अग्नि की इस विशेषता से भली भांति परिचित थे और इसीलिए हवन और दूसरे सभी वैदिक कर्मों में अग्नि का विशेष महत्त्व होता है। 


हवन मात्र एक कर्मकांड नहीं बल्कि एक योगी के लिए उन दिव्य शक्तियों से वार्तालाप का माध्यम है जो इस सृष्टि को चलाती हैं। जिस प्रकार इस संसार में पृथ्वी, जल, वायु व आकाश प्रदूषित हो जाते हैं, उसी प्रकार से मानव शरीर में भी इन तत्त्वों का प्रदूषित होना संभव है। यह प्रदूषण मनुष्य को पतन अथवा विकृति की ओर धकेलता है।


मनुष्य में इन तत्त्वों के प्रदूषण का पता लगाना अति सरल है। पृथ्वी तत्त्व के दूषित होने से व्यक्ति को समाज में प्रतिष्ठित पद और भव्य जीवन शैली जैसी सुविधाएं पाने की इच्छाएं बेलगाम होने लगती हैं। जब जल तत्त्व दूषित होता है तो अप्राकृतिक काम इच्छा जागृत होने लगती है। वैदिक शास्त्र अपनी स्वाभाविक इच्छाओं का दमन करने के लिए नहीं कहता। अग्नि तत्त्व को दूषित नहीं किया जा सकता। योग और सनातन क्रिया की साधना से साधक अग्नि तत्त्व के अनुकूल स्तर बनाए रख सकता है।


वायु तत्त्व यह निश्चित करता है कि हृदय व फे़फड़े ठीक से कार्य करें। इस तरह रक्त संचार प्रणाली और श्वास प्रणाली भी सही काम करती रहती है। अंत में दूषित आकाश तत्त्व के कारण थायरायड व पैराथायरायड ग्रंथियों के रोग और श्रवण शक्ति का क्षीण होना पाया जाता है। मात्र एक हवन में ही यह क्षमता होती है कि मनुष्य के सभी दोष समाप्त हो सकें।

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